________________
२०७
वर्य-विषय और दार्शनिक विचार बा अपने अंगनि का घात करै वा विषाद करि मरि जाय । ऐसी अवस्था मान होते होय है' 1
पंडितजी ने चारित्र मोह के अन्तर्गत उत्पन्न कपाय भावों का विश्लेषण केवल शास्त्रीय दृष्टि से नहीं किया है, उसमें उनकी मनोवैज्ञानिक पकड़ है । अन्तर केवल इतना ही है कि मनोविज्ञान जहाँ विभिन्न भावों की सत्ता के मनोवैज्ञानिक कारण खोजता है, वहां वे इसका कारण मोहजन्य रागात्मक परिणति को मानते हैं । इस बात में दोनों एक मत हैं कि कषाय और मनोवेग ही मनुष्य के लौकिक चरित्र की विधायक शक्तियां हैं। जीवन में सारी विषमताएँ इन्हीं के कारण उत्पन्न होती हैं। इन्हीं के कारण वह अपने-पराये का भेद करता है।
मनोविज्ञान जिन्हें मनोवेग कहता है, जैन दर्शन में उन्हें राग-द्वेष रूप कषाय भात्र कहा गया है । मनोविज्ञान के अनुसार मानव का सम्पूर्ण व्यवहार मनोवेगों से नियन्त्रित होता है और पंडितजी भी यही कहते हैं कि रागीद्वेषी प्रारगी का व्यवहार राग-द्वेषमूलक है । इस प्रकार उनका मोह-राग द्वेष भावों का विश्लेषण मनोवैज्ञानिक है। विविध विचार
उपयुक्त दार्शनिक विचारों के अतिरिक्त उन्होंने अपने साहित्य में यत्र-तत्र यथाप्रसंग अन्य लौकिक एवं पारिलौकिक, सामयिक एवं
कालिक, सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। अत्र सामान्य रूप से उनका संक्षेप में परिशीलन किया जाता है। वक्ता और श्रोता
पंडित टोडरमन्न मुख्य रूप से विशुद्ध आध्यात्मिक विचारक हैं । विचार उनकी अनुभूति का ग्रंग है । लेकिन यह अनभूतिमूलकता उन्हें तर्क से विरत नहीं करती। वे जिस बात का भी विचार करते हैं, तक उसकी पहली सीढ़ी है। उन्होंने तत्त्वज्ञान और उससे सम्बन्धित 'मो० मा० प्र०, ७६-७७