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पंजित टोडरमल ; व्यक्तित्व और कर्तृत्व जब आत्मा यह अनुभव करता है कि कुछ पर-पदार्थ मुझे मुखी करते हैं और कुछ दुःखी करते हैं: कुछ मेरे जीवन के रक्षक हैं, कुछ विनाशक : नत्र उनके प्रति दुष्ट अलिष्ट वृद्धि हान होती है । यह इष्ट-अनिष्ट बुद्धि ही राग-द्रंप भावों की मुख्योत्पादक है | जब तत्त्वाभ्यास से वस्तुस्वरूप का सच्चा ज्ञान होता है और पात्मा यह अनुभव करने लगता है वि. मेरे मुख-दुःख और जीवन-मरगा के कारण मुझ में ही है, मैं अपने सुख-दुःख व जीवन-मरगा का स्वयं उत्तरदायी है. कोई. पर-पदार्थ मुझे सुखी-दुःखी नहीं करता है और न कर ही सकता है, तो पर-पदार्थ से इन्ट-अनिष्ट बृद्धि समाप्त होने लगती है और क्रोधादि का भी अभाव होने लगता है ।
___पंडितजी ने क्रोध, मानादि कपायों से युक्त मानसिक और वाह्य क्रिया-कलापों के सजीव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने सब कुछ शास्त्रों में ही देख कर नहीं लिखा है, वरन् अपने अन्तर एवं जगत् का पुरा-पूरा निरीक्षण करके लिखा है। अभिमानी व्यक्ति को प्रवृत्ति का वर्गान ये इस प्रकार करते हैं :
"बहरि जब याकै मान कापाय उपजे तय औरनि वो नीचा वा आपकी ऊँचा दिखाबने की इच्छा हो है। बहुरि ताकै अथि अनेक उपाय विचार, अन्य वी निन्दा कर, अापकी प्रशंसा करै बा अनेक प्रकार करि औरनि की महिमा मिटावे, अापकी महिमा करै । महा कष्ट करि घनादिक का संग्रह किया ताकौं विवाहादि कार्यनि विर्षे खरचै वा देना करि (कर्ज लेकर) भी खर । मुए पो हमारा जस रहेगा ऐसा बिचारि अपना मरन करिके भी अपनी महिमा बधावै । जो अपना सन्मानादि न करै ताकौं भय आदिक दिखाय दुःख उपजाय अपना सम्मान करानै । बहुरि मान होते कोई पूज्य बड़े होहिं तिनका भी सम्मान न करे, किन्लू विचार रहता नाहीं । बहुरि अन्य नीचा, प्राप ऊँचा न दीमें तो अपने अंतरंग विर्ष याम बहुत रान्तापवान होय -.. -- --.- . .- -.. . १ मो मा० प्र०, ३३६ २ वहीं, ३३६