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________________ २०२ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और फर्तृत्व ___"बहुरि हिंसादि सावद्ययोग का त्याग कौं चारित्र मानें है। तहाँ महायतादि रूप शुभ योग की उपादेयपने करि ग्राह्य माने है । सो तत्वार्थसूत्र विर्ष आस्रव-पदार्थ का निरूपमा वरतें महाप्रत अणुक्त भी प्रास्रव रूप कहे हैं । ए उपादेव कैस होय ? अर पालव तो बंध का साधका है, चारित्र मोक्ष का साधक है, तातै महावतादिरूप पासव भावनिकों चारित्रपनों संभव नाहीं, सकल कपाय रहित जो उदासीन भाव ताही का नाम चारित्र है । मौ चारित्रमोह के देशवाति स्पर्द्धकनि के उदय ते महामंद प्रशस्त राम हो है, सो चारित्र का मल है। याकौं छूटता न जानि याका त्याग न कर है, सावद्ययोग ही का त्याग कर है। परन्तु जैसे कोई पुरुष कंदमूलादि बहुंत दोषीक हरितकाय का त्याग कर है अर केई हरितकानि की भखे है परन्तु याकौं धर्म न माने है । तैसें मुनि हिंसादि तीन कषाय हा भावनि का त्याग करे हैं पर केई मंदकषाय रूप महाग्रतादि की पाले हैं परन्तु ताकी मोक्षमार्ग न माने हैं। यहां प्रपन -- जो ऐसे हैं, ती चारित्र के तेरह भेदनि विर्षे महावतादि की कहे हैं ? ताका समाधान -- यह व्यवहारचारिय कहा है । व्यवहार नाम उपचार का है । सो महावतादि भए ही बीत रागचारित्र हो है । ऐसा सम्बन्ध जानि महानतादि विषं चारित्र का उपचार किया है । निश्चय करि निःकपाय भाव है. सोई साँचा चारित्र है'।" । इन सत्र का विस्तत वर्णन पंडित टोडरमल मोक्षमार्ग प्रकाशक के 'चारित्र अधिकार' में करने वाले थे' जो दुर्भाग्य से लिखा नहीं जा सका, किन्तु जैनाचार के मूल सिद्धान्त 'अहिंसा' पर पंडित टोडरमल के प्राप्त साहित्य में यत्र-तत्र पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। अहिंसा राग-दुग-मोह आदि विकारी भावों की उत्पत्ति हिसा है और उन भावों की उत्पत्ति नहीं होना अहिंसा है । हिसा-अहिंसा की १ मो० मा० प्र०, ३३६-३३७ २. वही, २३१ ३ पुरुषार्थसियुपाय, श्लोक ४४
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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