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________________ परित टोडरमल ; व्यक्तित्व और कवि वाह्याचार निष्फल है' | वाह्याचार शुद्ध होने पर भी यदि अभिप्राय में हाम्ना बनी रहती है तो आपका यात्महित की दृष्टि से कोई मूल्य नहीं है। विषय-कषाय को बासना का अभाव ही सच्चा चारित्र है और उसका क्रमशः कम होते जाना ही चारित्र को दिशा में क्रमिक विकास है। चारित्र के नाम पर किए जाने वाले असंगत आचरण एवं हिंसामुलक प्रवृत्तियों का पं० टोडरमल ने अपने साहित्य में यथास्थान जोरदार स्खण्डन किया है । हिंसामूलक अयत्नाचार-प्रवृत्ति का उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों में भी निषेध किया है। वे लिखते है : "देहरा पूजा प्रतिष्ठादिवा कार्य विष जो जीव हिंसा होने का भय न राख, जतन स्यों न प्रवतै, केवल बड़ाई के वास्तै जैसे-तैसे कार्य कर, तो धर्म है नाहीं, पाप ही है।" आचरण को उन्होंने सर्वत्र अहिंसामूलक और विवेकसंमत ही स्वीकार किया है। सर्वत्र प्राध्यात्मिक लाभ-हानि के विचारपूर्वक चलने की सलाह दी है। लौकिक प्रतिष्ठा और सम्मान के लिए किये गए धार्मिक सदाचार रूप नाचरणा का उनकी दृष्टि में कोई महत्त्व नहीं है। उन्होंने लिखा है : "जो मान बड़ाई के वास्ते बहुत उपवास अंगीकार करि लंघन जी ज्यों भूखा गरं तौ किछू सिद्धि नाहीं ।" उनका मानना है कि बाह्य व्रतादिक की प्रतिज्ञा लेने के पूर्व परिणामों की विशुद्धता पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। शक्ति के अनुसार ही प्रतिज्ञा ली जानी चाहिए । शक्ति के अभाव में प्रतिज्ञा पाकुलता ही उत्पन्न करेगी। इस संबंध में वे लिखते हैं : - 'केई जीव पहल तो बड़ी प्रतिज्ञा धरि बैठे पर अंतरंग विषय कपायबासना मिटी नाहीं । तब जैसे तैसे प्रतिज्ञा पूरी किया चाहैं, ' (क) भो गा०प्र०, ३३६ (ख) तस्मारिका प्रतिफलंति न भावान्या: -प्रा० समन्तभद्र २ मो. मा० प्र०.३४६ 3 पू० भा० टी०, ४६ ४ वही, ५२
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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