SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष-विषय और दार्शनिक विचार १६९ कर अल्प राग करने की सलाह दी गई है, पर रागादि भाव बढ़ाने को कहीं भी अच्छा नहीं बताया गया है। जिसमें राम का पोषण हो, वह शास्त्र जैन शास्त्र नहीं है । न्याय व्याकरणावि शास्त्रों के अध्ययन को उपयोगिता चार अनुयोगों के अतिरिक्त न्याय व्याकरणादि-विषयक शास्त्र भी जैन साहित्य में उपलब्ध हैं । अनुयोग रूप शास्त्रों में प्रवेश पाने के लिए उनके सामान्य अध्ययन की उपयोगिता पंडित टोडरमल ने स्त्रीकार की है, क्योंकि व्याकरण और भाषा के सामान्य ज्ञान बिना अनुयोग रूप शास्त्रों का अध्ययन सम्भव नहीं है तथा न्याय शास्त्रों के अध्ययन बिना तत्त्व निर्णय करना कठिन है. 1 पाण्डित्य प्रदर्शन के लिए इनके अभ्यास में समय नष्ट करना वे उपयुक्त नहीं समझते हैं। वे लिखते हैं : "जे जोब शब्दनि की नाना युक्ति लिएं अर्थ करने को ही व्याकरण अवगाहै हैं. वादादि करि महन्त होने कौं न्याय अवगाहें हैं, चतुरपना प्रकट करने के अथि काव्य अवगाहें हैं, इत्यादि लौकिक प्रयोजन लिए इनिका अभ्यास करें हैं, ते धर्मात्मा नाहीं । बने जैता थोरा बहुत अभ्यास इनका करि अात्महित के अथि सत्त्वादिक का निर्णय करें हैं, सोई धर्मात्मा पंडित जानना।" सम्यक्चारित्र अात्मस्वरूप में रमण करना ही चारित्र है। मोह-राग-द्वेष से रहित आत्मा का परिणाम साम्प्रभाव है और साम्यभाव की प्राप्ति ही चारित्र है । अशुभ भाव से निवृत्त होकर शुभ भाव में प्रवृत्ति को भी व्यवहार से चारित्र कहा गया है | जैन दर्शन में वामाचार की अपेक्षा भाव शुद्धि पर विशेष बल दिया गया है। भाव शुद्धि बिना १ मो० मा० प्र०, ४४६ २ वहीं, ४३२ अ वही, ३४७ ४ प्रवचनसार, गाथा ७ ५ द्रव्यसंग्रह, गाथा ४५ - - - ....... -
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy