________________
१६८
- पंडित टोडरमल : व्यक्तिस्य और कतत्व वे तो अध्यात्म की धारा घर-घर तक पहुँचाना चाहते थे किन्तु कुछ लोगों को यह पसन्द न था, अतः ये लोग कहते थे कि उत्कृष्ट अध्यात्म-उपदेश कम से कम ग्राम सभायों में तो न दिया जाय । पंडित टोडरमल ग्राम जनता में अध्यात्म-उपदेश की अावश्यकता निम्नानुसार प्रतिपादित करते हैं :
"जैसें मेघ वर्षा भए वहत जीवनि का कल्याण होय अर काह के उलटा टोटा पड़े, ती तिसकी मुख्यता करि मेघ का तो निषेध न करना । तैसें सभा विर्षे अध्यात्म उपदेश भए बहुत जीवनि कौं मोक्षमार्ग की प्राप्ति होय अर काहू के उलटा पाप प्रवत्त, तौ तिसकी मुख्यता करि अध्यात्म शास्त्रनि का तो निषेध न करना ।" अनुयोगों का अध्ययन-क्रम
अनयोगों के अध्ययन-क्रम के सम्बन्ध में कोई नियम सम्भव नहीं है। अपनी योग्यता और रुचि के अनुकूल अध्ययन करना चाहिए । फेर-बदल कर चारों अनुयोगों का अध्ययन करना हचि एवं सर्वाङ्गीण अध्ययन की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उनमें वणित-विषय के भाव को, उनकी कथन-शैली के सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए। सब को एक समान जान कर अध्ययन करने में भ्रम हो जाना सम्भव है। कई ग्रन्थों में एकाधिक अनूयोगों का कथन भी एक साथ प्राप्त होता है । अतः अनुयोगों का अध्ययन-क्रम निर्धारित नहीं किया जा सकता है। वीतरागता एकमात्र प्रयोजन ___समस्त जिनवाणी का तात्पर्य एकमात्र वीतरागता है । वीतरागताही परम धर्म है, अतः चारों अनयोगों में वीतरागता की ही पुष्टि की गई है। यदि कहीं पूर्ण राग त्याग की बात कही गई है, तो कहीं पूर्ण राग छूटता संभत्र दिखाई न दिया तो अधिया राग छोड़
... - . - -- । मो० मा प्र०, ४३० २ वही, ४४८ 3 बही, ४२१ ४ पंचास्तिकाय, समयव्याख्या टीका, २५७