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________________ वर्ष-गिग प्रो. शानिय विकार १९७ __"जैसे गर्दभ मिश्री खाय मरे, तो मनुष्य तो मिथी खाना न छोड़े। तैमें विपरीत बुद्धि अध्यात्म ग्रन्थ मुनि स्वच्छन्द होय, तो विवेकी तो अध्यात्म ग्रंथनि का अभ्यास न छोड़े। हाँ, इतना अवश्य है कि जहाँ-जहाँ स्वच्छन्द होने की थोड़ी भी अाशंका हो, वहाँ-वहाँ सावधान अवश्य किया जाना चाहिए तथा अध्यात्म ग्रन्थों में यथास्थान सावधान किया भी गया है। यदि स्वच्छन्द होने के भय से अध्यात्म उपदेश का निषेध कर देव तो मुक्ति के मार्ग का ही निषेध हो जायगा, क्योकि मोक्षमार्ग का मूल उपदेश तो वहाँ ही है। कुछ लोग कहते हैं कि उत्कृष्ट अध्यात्म उपदेश उन्च भूमिका प्राप्त पुरुषों के लिए तो उपयुक्त है, पर निम्न स्तर वानों को तो व्रत, शील, संयमादि का उपदेश ही उपयुक्त है। उक्त शंका का समाधान वे इस प्रकार करते हैं : "जिनमत विर्ष तो यह परिपाटी है, जो पहलै सम्यक्त्व होय पीछे वत होय । सो सम्यक्त्व स्वपर का श्रद्धान भए होय पर सो श्रद्धान द्रव्यानुयोग का अभ्यास किए होय । तानें पहले द्रव्यानयोग के अनुसार श्रद्धान करि सम्यग्दृष्टि होय, पीछे चरणानुयोग के अनुसार व्रतादिक धारि प्रती होय, ऐसे मुख्याने तो नीचली दशा विषं ही द्रव्यानुयोग कार्यकारी है, गौरापनें जाके मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती न जानिए, ताकौं कोई नतादिक का उपदेश दीजिए है । जाते ऊंची दशा वालौं कौं अध्यात्म अभ्यास योग्य है, ऐसा जानि नीचली दशा वालों को तहाँ से पराङ्मुख होना योग्य नाहीं ।" . भो० मा० प्र०, ४२६ २ वही, ४२६.३० 3 वही, ४३० ४ यहाँ ब्रतादिक का अर्थ प्रणुनत या महानत न होकर साधारण प्रतिज्ञा रूप ब्रतों से है - जैसे मध-मांस-मचु, सचिन पदार्थ यादि के त्याग, देवदर्शन बारने, अनछना पानी नहीं पीने आदि की प्रतिज्ञा । ५ मो० मा० प्र०, ४३०-३१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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