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________________ १६६ - पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व जाता है। ग्रामवादि तत्त्वों का वर्णन बीन रागता प्राप्ति के दृष्टिकोण को लक्ष्य में रख कर किया जाता है । आत्मानुभूति प्राप्त करने की प्रेरणा देने के लिए उसकी महिमा विशेप बनाई जाती है। अध्यात्म उपदेश को विशेष स्थान प्राप्त रहता है तथा बाह्याचार और व्यवहार का सर्वत्र निषेध किया जाता है। उक्त कथन-शैली का उद्देश्य न समझ पाने से अनेक विसंगतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, अतः पंडित टोडरमल ते इसके अध्ययन करने वालों को सावधान किया है। वे लिखते हैं :- "जे जीव यात्मानभवन के उपाय को न करें हैं अर बाह्य क्रियाका विर्षे मग्न हैं, तिनको वहां से उदास करि आत्मानुभवनादि विर्षे लगावने कौं प्रत, शील, संयमादि का हीनपमा प्रगट कीजिए है । तहाँ ऐसा न जानि लेना, जो इनका छोड़ि पाप विर्षे लगना । जातें तिस उपदेश का प्रयोजन अशुभ विर्ष लगावनें का नाहीं । शुद्धोपयोग विष लगावने की शुभोपयोग का निषेध कीजिए है।...तैसें बंधकारण अपेक्षा पुण्य-पाप समान है. परन्तु पापते पुण्य किछु भला है । वह तीवकषाय रूप है, यह मंदकपाय रूप है । ताते पुण्य छोड़ि पाप विर्षे लगना यूक्त नाहीं है।......ऐरों ही अन्य व्यवहार का निषेध तहाँ किया होय, ताकी जानि प्रमादी न होना । मा जानना - जे केवल व्यवहार विर्षे ही मग्न हैं तिनकौं निश्चय की रुचि करावने के अथि व्यवहार की होन दिखाया है।" द्रव्यानुयोग के शास्त्रों का विशेषकर अध्यात्म के शास्त्रों के अध्ययन का निषेध निहित स्वार्थ वालों द्वारा किया जाता रहा है। इन्होंने इन के अध्ययन में अनेक काल्पनिक खतरे खड़े किए हैं। पंडित टोडरमल के युग में भी इसी प्रकार के लोग बहुत थे, जो अध्यात्म ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन का विरोध करते थे, अत: उक्त संदर्भ में उठाई जाने वाली समस्त संभावित आशंकानों का युक्तिसंगत समाधान पंडितजी ने प्रस्तुत किया है । सब से बड़ा भय यह दिखाया जाता है कि इन शास्त्रों को पढ़ कर लोग स्वच्छन्द हो जावेगे, पुण्य छोड़ कर पाप में लग जावेंगे। इसके सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है :१ मो मा० प्र०, ४१८-१९ r -. ..
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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