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योजनाओं को कार्यान्वित करने में कभी किसी प्रकार की प्राधिक समस्या उत्पन्न नहीं होने दी ।
डॉ० हुकमचन्दजी भारिल्ल इस संस्था के प्राण हैं । पूज्य स्वामीजी के उद्गार "अच्छा मिल गया । टोडरमल स्मारक को अच्छा मिल गया । गोदीका के भाग्य से मिल गया । गोदीका भी पुण्यशाली है न, सो मिल गया। बाद रहा। नरनार
आते हैं। संस्था के सभी कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने व उनको कार्यान्वित करने में पापकी अद्भुत कार्यक्षमता व विलक्षण प्रतिभा प्रस्फुटित हई है। आपकी तत्वप्रचार की उत्कट लगन तथा दीर्घ दृष्टि से कार्य संभालने की कुशलता अनुकरणीय है।
डॉ० देवेन्द्रकुमारजी जैन, इन्दौर के प्रति मैं हार्दिक आभार प्रगट करता हूँ, जिनके सक्षम निर्देशन में यह पुनीत कार्य सम्पन्न हुआ व जिन्होंने हमारे अनुरोध पर प्रस्तावना लिखने की भी कृपा की है।
डॉ० हीरालाल जी माहेश्वरी ने शोध-प्रबंध के मुद्रण के लिये कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये, तथा भूमिका लिखने का हमारा प्राग्रह समयाभाव होते हुए भी स्वीकार किया, एतदर्थ हम उनके प्राभारी हैं ।
अन्त में मैं श्री सोहनलालजी जैन, श्री राजमलजी जैन व जयपुर प्रिण्टर्स परिवार का भी पूर्णरूपेण प्राभारी है, जिन्होंने दिन-रात एक करके इतने अल्प समय में ऐसा सून्दर मुद्रण करके, अन्य आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।
आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रंथ ऐतिहासिक, साहित्यिक व आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक सिद्ध होगा।
द्वितीय संस्करण हेतु समुचित सुझावों की अपेक्षा के साथ,
ए-४, वापूनगर जयपुर ३०२००४ दि. ५ अगस्त, १९७३ ई०
नेमीचंद पाटनी
मंत्री पंडित टोडरमल स्मारक इस्ट
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