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________________ अपनी बात प्राचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी का विद्वत्ता और रचना-परिमाण की दृष्टि से हिन्दी गद्य साहित्य जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान है, परन्तु उनके व्यक्तित्व और कर्तत्व पर अनुसंधानपरक अध्ययन अभी तक नहीं हुआ था। उनका नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में इसलिए नहीं पा सका क्योंकि उनकी रचनाएँ गद्य में थीं और ब्रजभाषा गद्य उम समय इतना लोकप्रिय नहीं थाः तथा खड़ी बोली में गदा का विकास इस द्रुतगति से हुआ कि १७वीं- १८ौं शती के ब्रजभाषा गद्म के मूल्यांकन की साहित्य के इतिहास के पंडितों ने प्रावश्यकता ही नहीं समझी। यदि वे गद्य की जगह पद्य लिखते तो इतिहासकार संभवतः उनका विशेष रूप से उल्लेख करते । हिन्दी जैन साहित्य के इतिहासों में भी उनके व्यक्तित्व और साहित्य का उल्लेख मात्र है । दुसरा कारण यह भी रहा कि पंडितजी जैन अध्यात्म से सम्बद्ध थे । मुमुक्ष लोग पंडितजी की रचनाओं की विषय-वस्तु से ही संतुष्ट थे, उसके कलात्मक पक्ष या ऐतिहासिकता अथवा अभिव्यक्ति कौशल से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था । जो भी हो, उनकी रचना (मोक्षमार्ग प्रकाशक ) अाज से ७६ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् १९५४ (सन् १८६७ ई०) में सर्वप्रथम लाहौर से बाबू ज्ञानचन्दजी जैन ने प्रकाशित की थी। तब से उनकी रचनाएँ निरन्तर प्रकाशित ही नहीं होती रहीं, बल्कि पठन-पाठन की दृष्टि से भी लोकप्रिय रही हैं । उनका 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' अपने आप में अभूतपूर्व मौलिक प्राध्यात्मिक ग्रन्थ है। यह तो हुई उनके साहित्य प्रकाश और परिचय की पहली भूमिका । दूसरी भूमिका में यद्यपि पंडितजी पर कुछ फुटकर निबंध और अस्त्रबारों के विशेषांक प्रकाशित हुए और सन् १९६४ ई० में पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की स्थापना हुई तथा जयपुर में एक स्मारक भवन का निर्माण हुआ तथापि पंडितजी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर शोधपूर्ण अध्ययन नहीं हुआ । ( xxiii )
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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