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________________ पर्य-विषय और धाशनिक विचार १६३ उक्त प्रयोजन की सिद्धि हेतु उनमें पौराणिक मुल प्रारूयानों के साथ-साथ काल्पनिक कथाएं भी लिखी जाती हैं तथा प्रयोजन अनुसार उनका संक्षेप-विस्तार भी किया जाता है। कहीं-कहीं धर्मबुद्धिपूर्वक किये गए अनुचित कार्यों की भी प्रशंसा कर दी जाती हैं। जैसे विष्णुकुमार मुनि द्वारा किये गा अलि-बंधन एवं ग्वाल द्वारा मुनि को तपाये जाने की प्रशंसा की है। उक्त कार्य उनकी भूमिवानुमार योग्य नहीं थे, किन्तु प्रयोजनवश प्रशंसा की है | वहन में लोग प्रथमानयोग की पद्धति को नहीं जानते हैं, अतः उक्त कार्यों को यादर्ण व अनुकरणीय मान लेते हैं। पंडित टोडरमल ने एमी प्रवृत्तियों के प्रति सावधान किया है। उन्होंने स्पाट लिखा है कि मुनि विष्णकुमार के बहाने और मुनियों को ऐसे कार्य करना ठीक नही है । इसी प्रकार ग्वाले की प्रशंसा सून कर और गृहस्थों को मुनियों को तपाना आदि धर्मपद्धति के विरुद्ध कार्य करना योग्य नहीं है। प्रथमानुयोग में काव्यशास्त्रीय परम्परा के नियमानुसार कथन किया जाता है, क्योंकि काभ्य में कही गई बात अधिक असरकारक • तथा मनोरंजक होती है । प्रथमानयोग में कहीं-कहीं वर्तव्य विशेष की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अल्प शुभ कार्य का फल बढ़ा-चढ़ाकर भी बना दिया जाता है तथा पाप कार्यों के प्रति हतोत्साह करने के लिए अल्प पाप का फल भी बहत खोटा बता दिया जाता है, क्योंकि अज्ञानी जीव बहुत फल दिखाए बिना धर्म कार्य के प्रति उत्साहित नहीं होते तथा पाप कार्य मे डरते नहीं है । यह कथन पूर्ण सत्य न होकर भी प्रयोजन अपेक्षा ठीक है क्योंकि पाप का फल घूरा और धर्म का फल अच्छा ही दिखाया गया है, किन्तु उक्त कथन को नाग्नम्यरूप मानने के प्रति सचेत भी किया गया है । १ मो० मा० प्र०, ३१८- ३६६ २ बही, ४०२ ३ वही, ४२१ ४ वहीं, ३६६-४०० ४ वही, ४०१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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