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________________ १९२ पंडित टोडरमल : व्यक्तिस्त्र और कर्तव चार अनुयोग जैन शास्त्रों का एक वर्गीकरण चार अनुयोगों के रूप में भी किया गया है : (१) प्रथमानुयोग (२) करणानुयोग (३) चररणानुयोग (४) द्रव्यानुयोग अनुयोगों को कथन-शैली आदि का सामान्य वर्णन तो पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों में मिलता है, पर वह अति संक्षेप में है। पंडित टोडरमल ने उक्त अनयोगों की कथन-पद्धति का विश्लेषगा बड़ी बारीकी एवं विस्तार से किया है। उनका विश्लेषण मौलिक एवं तर्कपूर्ण है । उन्होंने प्रत्येक अनुयोग की परिभाषा, प्रयोजन, व्याख्यान का विधान, व्याख्यान-पद्धति और अभ्यासक्रम का विश्लेपरगात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है । प्रत्येक अनुयोग के सम्बन्ध में उठने बालो दोष-कल्पनाओं को स्वयं उठा-उठाकर उनका निराकरण प्रस्तुत किया है। अन्योगों के कथन में परस्पर प्रतीत होने वाले विरोधाभासों का, स्वयं शंकाएँ उपस्थित करके, समुचित समाधान करने का सफल प्रयास किया है। ___ अब हम प्रत्येक अनुयोग के सम्बन्ध में उनके द्वारा प्रस्तुत विचारों का परिचयात्मक अनुशीलन प्रस्तुत करेंगे। प्रथमानुयोग जिन शास्त्रों में महापुरुषों के चरित्रों द्वारा पुण्य-पाप के फल का वर्णन होता है और वीतरागता को हितकर बताया जाता है, उन्हें प्रथमानयोग के शास्त्र कहते हैं। इनका प्रयोजन संसार की विचित्रता और पुण्य-पाप का फल दिखा कर तथा महापुरुषों की प्रवृत्ति बता कर प्रथम भूमिका बालों को सन्मार्ग दिखाना है । .... - . . . - १ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, न. २ श्लोक ४२-४६ २ मो. मा० प्र०, ३६४
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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