SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बर्थ-विषय और दार्शनिक विचार १९१ इस प्रकार इनमें कम या अधिक रूप में प्रायः वही दोष पाए जाते हैं जो कि निश्चयाभासी और ब्यवहाराभासियों में पाए जाते हैं । नयकथनों का मर्म और उनका उपयोग __ जैन शास्त्रों में यथास्थान सर्वत्र निश्चय व्यबहार रूप कथन है । जैसे औषधि-विज्ञान सम्बन्धी शास्त्रों में अनेक प्रकार की औषधियों का वर्णन होता है । पर प्रत्येक औषधि हर एक रोगी के काम की नहीं होती है, विशेष रोग एवं व्यक्ति के लिए विशेष औषधि विशिष्ट अनुपात के साथ निश्चित मात्रा में ही उपयोगी होती है । यही बात शास्त्रों के कथनों पर भी लागू होती है। अतः उनके सही भाव को पहिचान कर अपने लिए हितकर उपदेश को मानना उपयुक्त है, अन्यथा गलत औषधि के सेवन के समान लाभ के स्थान पर हानि की संभावना अधिक रखती है! जैन शास्त्रों में अनेक प्रकार उपदेश है । बुद्धि और भूमिकानुसार उपदेश ग्रहण करने पर लाभ होता है। शास्त्रों में कहीं निश्चयपोषक उपदेश है, कहीं व्यवहारपोषकः । कोई पहिले से ही निश्चयपोषक बात सुनकर स्वच्छन्द हो रहा था, बाद में जिनवाणी में निश्चयपोषक उपदेश पढ़ कर और भी स्वच्छन्द हो जाय तो बुरा ही होगा । इसी प्रकार कोई पहिले से ही प्रात्मज्ञान की ओर से उदास होकर क्रियाकाण्ड में मग्न था, बाद में जिनवारणी में व्यवहारपोषक कथन पढ़ कर और भी क्रियाकाण्डी हो जाय तो बूरा ही होगा 1 अतः यदि हमारे जीवन में हमें व्यवहार का प्राधिक्य दिखाई दे तो निश्चयपोषक उपदेश हितकर होगा और यदि स्वच्छन्दता की ओर झुकाव हो तो व्यवहारपोषक उपदेश हितकर होगा । अतः जिनवाणी के मर्म को अत्यन्त सावधानीपूर्वक उसकी शैली के अनुसार ही समझने का यत्न करना चाहिए। ' मो० मा०प्र०, ४३६ २ वही, ४३९-४४० ३ वही, ४४३
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy