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करणानुयोग
कररणानुयोग में गुणस्थान, मार्गणास्थान आदि रूप जीव का तथा कर्मों का और तीन लोक सम्बन्धी भूगोल का वर्णन होता है'। गणना और नाप आदि का विशेष वर्णन होने से इसमें गणित की मुख्यता रहती है । इसमें सूक्ष्मातिसूक्ष्म विषयों का स्थूल बुद्धिगोचर कथन होता है । जैसे जीवों के भाव तो अनन्त प्रकार के होते हैं, वे सब तो कड़े नहीं जा सकते, अतः उनका वर्गीकरण चौदह भागों में करके चौदह गुग्गस्थान रूप वर्णन किया है। इसी प्रकार कर्म परमाणु तो अनन्त एवं अनन्तानन्त प्रकार की शक्तियों से मुक्त हैं, पर उन सब का कथन तो सम्भव नहीं है, अतः उनका भी वर्गीकरण साठ कर्मों एवं एक सौ अड़तालीस प्रकृतियों के रूप में किया गया है ।
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और क
इसमें अधिकांश कथन तो केवलज्ञानी द्वारा कथित निश्चय कथन है, किन्तु कहीं-कहीं उपदेश की अपेक्षा व्यवहार कथन भी है, उसको तारतम्य रूप से सत्य मान लेने के प्रति पंडित टोडरमल ने सावधान किया है तथा कहीं कहीं स्थूल कथन को भी पूर्ण तारतम्य रूप से सत्य मान लेने के प्रति भी सचेत किया है ।
चरणानुयोग
गृहस्थ और मुनियों के आवरण नियमों का वर्णन चरणानुयोग के शास्त्रों में होता है । इसमें सुभाषित नीतिशास्त्रों की पद्धति मुख्य है" तथा इसमें स्थूल बुद्धिगोचर कथन होता है । जीवों को पाप से छुड़ा कर धर्म में लगाना इसका मूल प्रयोजन है व उनका जीवन नैतिक और सदाचार से युक्त हो, यह इसका मुख्य उद्देश्य है । इसमें
" मो० मा० प्र०, ३३, ३५
२ वही, ३६६, ४२१
वही, ४०३
४ वही ४०३
५ श्रही, ४०६
६ वही, ३६३
७
वही, ४२१
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