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________________ १८६ पंचित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व चर्चा प्राचार्य अमृतचन्द्र ने पंचास्तिकाय संग्रह की 'समयव्याख्या' नामक संस्कृत टीका में की है, किन्तु बहुत संक्षेप में । उभयाभासी की चर्चा तो वहाँ भी नहीं है। यह तो पंडितजी की मौलिक देन है। जिस प्रकार विस्तृत, स्पष्ट और मनोवैज्ञानिक विवेचन पंडित । टोडरमल ने इन सब का किया है, वैसा अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता । उक्त भेदों का पृथक्-पृथक् विवेत्रन अपेक्षित है । निश्चयामासी निश्चय नय वस्तु के शुद्ध स्वरूप का कथन करता है, अतः निश्चय नय की अपेक्षा से शास्त्रों में प्रात्मा को शुद्ध-बुद्ध, निरंजन, एक, कहा गया है। वहाँ शुद्ध-बुद्ध, निरंजन और एक शब्द अपने विशिष्ट अर्थ को लिये हु हैं ! यह सब कथन अात्म-स्वभाव को लक्ष्य करके किया गया है। उक्त कथन का ठीक-ठीक भाव समझे बिना वर्तमान में प्रगट रागी-द्वेषी होते हुए भी अपने को शुद्ध (वीतरागी) एवं अल्पज्ञानी होकर भी बूद्ध (केवलज्ञानी) मानने वाले जीव निश्चयाभासी हैं। जब दे अपने को शुद्ध-बुद्ध कल्पित कर लेते हैं तो स्वच्छन्द हो जाते हैं, बाह्य सदाचार का निषेध करने लगते हैं। कहते हैं - शास्त्राभ्यास निरर्थक है, द्रव्यादि के विचार बिकल्प हैं, तपश्चरगा करना व्यर्थ क्लेश है, जतादि बंधन हैं और पूजनादि शुभ कार्य बंध के कारण है। जिनवाणी में निश्चय नय की अपेक्षा से उक्त कथन आते हैं, पर वे शुभोपयोग और वाह्य क्रियाकाण्ड को ही मोक्ष का कारण मानने वाले और शुद्धोपयोग को नहीं पहिचानने वालों को लक्ष्य में रख कर किये गए हैं। इस सम्बन्ध में पंडित टोडरमल लिखते हैं : "जे जीव शुभोपयोग कौं मोक्ष का कारण मानि उपादेय माने हैं. शुद्धोपयोग की नाही पहिचान हैं, तिनिकों शुभ-अशुभ दोउनि कौं अशुद्धला की अपेक्षा वा बंध कारण की अपेक्षा समान दिखाए हैं, बहुरि शुभ-अशुभनि का परस्पर विचार कीजिए, तौ शुभ भावनि विर्षे १ पंचास्तिकाय संग्रह, १६१-३६६ २ मो० मा० प्र०, २६३-२६४
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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