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धर्म्य-विषय और वाशनिक विचार
१५५ निर्णय करना उपयोगी है । व्यवहार को निश्चय के समान सत्य समझ लेना उपयुक्त नहीं है | जैनाभास ___बहुत से लोग जैन कुल में उत्पन्न होते हैं, जैन धर्म की वाह्य श्रद्धा रखते हैं तथा जैन शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन भी करते हैं, फिर भी जैन दर्शन का मर्म नहीं समझ पाने से तत्त्व से अढ़ते रह जाते हैं एवं उनके जीवन में अनेक बिसंगतियां उत्पन्न हो जाती है । वे सब जैनाभास हैं।
नय (निश्चय नय और व्यवहार नय) सम्बन्धी प्रज्ञान के कारण भ्रम में पड़े जैनाभासों को पंडित टोडरमल ने तीन भागों में विभाजित किया है :
(१) निश्चयाभासी (२) व्यवहाराभासी (३) उभयाभासी
आत्मा के शुद्ध स्वरूप को समझे बिना आत्मा को सर्वथा शुद्ध मानने बाले स्वच्छन्द निश्चयाभासी हैं । व्यवहार व्रत, शील, संयमादि रूप शुभ भाबों में आत्मा का हित मान कर उनमें ही लीन रहने वाले मोहमग्न व्यवहारभासी हैं । निश्चय-व्यवहार के सही स्वरूप को समझे विना ही दोनों को एकसा सत्य मान कर चलने वाले उभयाभासी हैं । उक्त भेदों में से निश्चयाभासी और व्यवहाराभासी जीवों की
५ मो० मा० प्र०, ३७२ २ वही, २८३ 5 कोज नय निपचय से आतमा को शुद्ध मान,
___ ये हैं सुदृछन्द न पियाने निज शुद्धता । कोऊ व्यवहार दान, शील, लप, भाव की ही,
प्रातम को हित जान, छांइत न मुद्धता । को व्यवहार नय निश्चय के मारग को,
भिन्न भिन्न पहिचान कर निज उद्धता । जब जान निश्चय के भेद व्यवहार सब, कारण व उपचार माने तब बुद्रता ।।
-- पु. भा. टी०, मंगलाचरण, छन्द ५