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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्त्व दो प्रकार से है । जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहा जाय वह निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग नहीं है किन्तु मोक्षमार्ग का सहचारी या निमित्त है, उसे मोक्षमार्ग कहना व्यवहार मोक्षमार्ग है |
बस्तुस्वरूप के सही ज्ञान के लिए यह आवश्यक है कि हम निश्चय नय के कथन को सही जान कर उसका श्रद्वान करें और व्यवहार नय के द्वारा किये गए कथन को प्रयोजनबश किया गया उपचरित कथन जान कर उसका श्रद्वान छोड़ें ।
व्यवहार नय असत्यार्थ और हेय है फिर भी उसे जैन शास्त्रों में स्थान प्राप्त है, क्योंकि व्यवहार स्वयं सत्य नहीं है फिर भी सत्य की प्रतीति और अनुभूति में निमित्त है । प्रारम्भिक भूमिका में व्यवहार की उपयोगिता है क्योंकि वह निश्चय का प्रतिपादक है । जैसे - हिमालय पर्वत से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली सैकड़ों मील लम्बी गंगा नदी की लम्बाई तो ऋया चौड़ाई को भी आँख से नहीं देखा जा सकता है । अत: उसकी लम्बाई-चौड़ाई और बहाव के मोड़ों को जानने के लिए हमे नक्शे का सहारा सना पड़ता है । पर जो गंगा नक्शे में है वह वास्तविक नहीं है, उससे तो मात्र गंगा को समझा जा सकता है, उससे कोई पथिक प्यास नहीं बूझा सकता है, प्यास बुझाने के लिए असली गंगा के किनारे ही जाना होगा । उसी प्रकार व्यवहार द्वारा कथित वचन नक्शे की गंगा के समान हैं । उनसे समझा जा सकता है पर उनके आश्रय स पात्मानुभूति प्राप्त नहीं की जा सकती है । प्रात्मानुभूति प्राप्त करने के लिए निश्चय नय के विषय भूत शूद्धात्मा का ही साथ लेना आवश्यक है । अतः व्यवहार नय तो मात्र जानने (समभने) के लिए प्रयोजनवान है।
व्यवहार नय मात्र दूसरों को ही समझाने के लिए ही उपयोगी नहीं वरन जन तक स्वयं निश्चय नय द्वारा वरिणत वस्तु को न पहिचान सके तब तक व्यवहार द्वारा वस्तु को स्वयं समझना भी उपयोगी है। व्यवहार को उपचार मात्र मान कर उसके द्वारा मुलभूत वस्तु का ' मो० मा० प्र०, ३६५-३६ २ वही, ३६८-३६६