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वर्य-विषय और शानिक विचार
१८३ सहज व सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाया है । उनके विश्लेषण का संक्षिप्त सार इस प्रकार है :
सच्चे निरूपण को निश्चय और उपचरित निरूपण को व्यवहार कहते हैं । एक ही द्रव्य के भाव को उस रूप हो कहना निश्चय नय है और उपचार से उक्त द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भाव स्वरूप कहना व्यवहार नय है । जैसे-मिट्टी के घड़े को मिट्टी का कहना निश्चय नय का कथन है और धी का संयोग देखकर घी का घड़ा कहना व्यवहार नय का कथन है | जिस द्रव्य की जो परिगाति हो, उसे उस ही की कहने वाला निश्चय नय है और उसे ही अन्य द्रव्य की कहने वाला व्यवहार नय है | व्यवहार नय स्वद्न्य को, परद्रव्य को व उनके भावों को व कारण कार्यादिक को किसी को किसी में मिला कर निरूपण करता है तथा निश्चय नय उन्हीं को यथावत निरूपण करता है, किसी को किमी में नहीं मिलाता है' । अतः निश्चय नय सत्यार्थ और व्यवहार नय असत्यार्थ है ।
वस्तुतः निश्चय नय और व्यवहार नय दस्तु के भेद न होकर समझने और कथन करने की शैली के भेद हैं। जैसे - एक खादी की टोपी है । टोपी तो एक ही है, पर उसका कथन दो प्रकार से हो सकता है
और प्रायः होता भी है। यह टोपी किसकी है ? इस प्रश्न के दो उत्तर सम्भव हैं, स्वादी को और नेताजी की । इन दोनों उत्तरों में कौन सा उत्तर सही है ? वस्तुतः टोपी तो खादी की ही है किन्तु इसे नेताजी पहनते हैं, अतः संयोग देखकर नेताजी की भी कही जा सकती है। टोपी को खादी की कहना निश्चय नय का कथन है और नेताजी की कहना व्यवहार नय का।
यदि इसी तथ्य को मोक्षमार्ग को ध्यान में रख कर देखें तो इस प्रकार कहा जावेगा – मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्ग का कथन
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'मो. मा०प्र०, ३६५-३७८ २ वही, ३६६ ३ वही, ३६७ ४ वही, ३६८ ५ वही, ३६६