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________________ १८२ पंडित टोडरमस : व्यक्तित्व मौर कर्तृत्व उन्हें एक कहा गया है, अतः यह व्यवहार कथन हया तथा जीव और शरीर एक क्षेत्र में रहने पर भी वे बस्तुतः भिन्न ही हैं, अत: यह असंयोगी कथन होने से निश्चय कथन हगा। व्यवहार नय को निषेध्य और निश्चय नय को निषेधक कहा गया है । पंचाध्यायीकार पंडित राजमलजी पांडे लिखते हैं :___न्यवहार नय स्वयं ही मिथ्या उपदेश देता है, अतः मिथ्या है और इसी से वह प्रतिषेध्य है। इसीलिए व्यवहार नय पर दृष्टि रखने वाला मिथ्या दृष्टि माना गया है। तथा निश्चय नय स्वयं भूतार्थ हाने से समीचीन है और इसका विषय निर्विकल्पक या वचन अगोचर के समान अनुभवगम्य है, अथवा जो निश्चय दृष्टि वाला है वहीं सम्यम्हाष्टि है और वही कार्यकारी है। अतः निश्चय नब उपादेय है किन्तु उसके सिवाय अन्य नयवाद उपादेय नहीं हैं।" कुन्दकुन्दाचार्य देव ने निश्चय नय से जाने हुए जीवादि सप्त तत्त्वों को सम्यग्दर्शन कहा है और निश्चय नय का पाश्रय लेने वाले मुनिवरों को ही निर्वाण प्राप्त होना बताया है। व्यवहार नय का कथन अज्ञानी जीवों को समझाने के लिए किया गया है । जिस प्रकार म्लेच्छ को म्लेच्छ भाषा के बिना समझाना सम्भव नहीं है, उसी प्रकार व्यवहार के बिना निश्चय का उपदेश नम्भव नहीं है. अत: जिनवाणी में व्यवहार का कथन पाया है । म्लेच्छ को समझाने के लिए भले ही म्लेच्छ भाषा का आश्रय लेना पड़े पर म्लेच्छ हो जाना तो ठीक नहीं, उसी प्रकार निश्चय का प्रतिपादक होने से भले व्यवहार से कथन हो पर उसका अनुकरण करना तो ठीक नहीं । निश्चय-व्यवहार की उक्त स्थिति को पंडित टोडरमल ने विस्तार से १ समयसार, गाथा २७२ २ पंचाध्यायी, अ० १ श्लोक ६२८-३० 3 समयसार, गाथा १३ ४ नहीं, २७२ ५ पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक ६ समयसार, आत्मख्याति टीका, २०-२१
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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