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________________ वण्म-विषय और दार्शनिक विचार १७७ पंडित टोडरमल वीतरागी सर्वज्ञ देव, प्रात्मानुभवी निर्ग्रन्थ गुरु एवं बीतरागता की पोषक सरस्वती के परम भक्त थे, किन्तु भक्ति के क्षेत्र में अन्ध श्रद्धा उन्हें स्वीकार न थी। वे लिखते हैं :- . "केई जीव भक्ति की मुक्ति का कारण जानि तहाँ अति अनुगगी होय प्रवत्त हैं सो अन्यमती जैसे भक्ति से मुक्ति माने है नैसे याकें भी श्रद्धान भया । सो भक्ति तौ रागरूप है। राग ते बन्ध है । तातं मोक्ष का कारण नाहीं । जय राग का कालावै. स नी पापानुराग होय, साते अशुभ राग छोड़ने कौं ज्ञानी भक्ति विर्षे प्रवर्ने है१ बा मोक्षमार्ग कौं बाह्य निमित्तमात्र जाने हैं। परन्तु यहाँ ही उपादेयपना मानि संतुष्ट न हो है, शुद्धोपयोग का उद्यमी रहै है।" जैन मान्यतानुसार भगवान् किमी का अच्छा-बुरा नहीं करते हैं और न ही किसी को कुछ देते-लेते हैं। भक्ति मुक्ति का कारण तो है ही नहीं, किन्तु लौकिक लाभ (भोग मामग्री, धनादि की प्राप्ति, शन नाश आदि) की प्राप्ति की इच्छा से की गई भक्ति से पूण्य भी नहीं बंधता अपितु पापबंध होता है, क्योंकि वस्तुतः वह भगवान् की भक्ति रूप शुभ भाव न हो कर भोगों को चाह रूपी अशुभ भाव है । भक्ति के नाम पर होने वाली नृत्य, गीत आदि रागवर्द्धक क्रियायों का भक्ति में कोई स्थान नहीं है । उक्त संदर्भ में बे लिखते है: "बहुरि भक्तयादि कार्यनि विर्षे हिंसादिक पाप बधाव वा गीत नृत्य गानादिक वा इष्ट भोजनादिक वा अन्य सामग्रीनि करि विषयनि कौं पोष, कुतूहल प्रमादादि रूप प्रवर्ते । तहाँ पाप तो बहुत उपजावं अर धर्म का किटू साधन नाही, तहाँ धर्म माने सौ सब कुधर्म है।" बैच और पुरुषार्थ ___ देव भाग्य को कहते हैं । पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्म ही भाग्य है व वर्तमान में किये गए प्रयत्न को पुरुषार्थ कहा जाता है । इस प्रकार दैव पूर्वनियोजित है और पुरुषार्थ इचेष्टित । अबुद्धिपूर्वक हुए कार्यो ५ मो० मा प्र०, ३२६ २ वहीं, ३२५-३२६, ४२६ ३ वही, २७५-७६
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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