SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० पंडित टोडरमल: व्यक्तित्व और कर्तृत्व "बहुरि बैधादिक के भयते वा स्वर्ग मोक्ष की चाहत, क्रोधादि न कर है, सो यहाँ क्रोधादि करने का अभिप्राय तो गया नाहीं। जैसे कोई राजादिक के मयत या महतपना का लोभते पर-स्त्री न सेव है तौ बाकौं त्यागी न कहिए। तैसे ही यह क्रोधादि का त्यागी नाहीं। तो कैसे त्यागी होय ? पदार्थ अनिष्ट-इष्ट भासै क्रोधादि हो है। जब तत्त्वज्ञान के अभ्यासतें कोई इष्ट-अनिष्ट न भासें तब स्वयमेव ही क्रोधादि न उपजै, तब सांचा धर्म हो है।” निर्जरा तस्व आत्मा से बंधे कर्मों का झड़ना निर्जरा है । इसके भी दो भेद हैं - द्रष्यनिर्जरा और भावनिर्जरा । आत्मा के जो भाव कर्म भरने में हेतु हैं, बे भाव ही भावनिर्जरा है और कर्मों का झड़ना द्रव्यनिर्जरा है। निर्जरा तप द्वारा होती है । तप दो प्रकार का होता है - अन्तरंग तप और बहिरंग तप । तप का सही रूप नहीं समझ पाने से जनसाधारण की दृष्टि अंतरंग तय की ओर न जाकर वाझ अनशनादि तपों की ओर ही जाती है और उनका भी वे सही स्वरूप समझ नहीं पाते हैं; तथा भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि के दुःखों को सहने का नाम ही तष मान लेते हैं। इच्छाओं के अभाव का नाम तप है, इस पर ध्यान नहीं जाता और तप के नाम पर बाह्म क्रियाकाण्ड में उलझे रह कर निर्जरा मान लेते हैं। उक्त संदर्भ में पंडित टोडरमल लिखते हैं : "जो बाह्य दुःख सहना ही निर्जरा का कारण होय तो तिथंचादि (पशु) भी भूख तृषादि सहैं है ।''........ उपवासादि के स्वरूप को भी सही नहीं समझते हैं। कषायों, भोगों और भोजन के त्यागने का नाम उपवास है, किन्तु मात्र भोजन १ मो० मा०प्र०, ३३५-३६ २ द्रव्यसंग्रह, गाधा ३६ तस्वार्थसूत्र, अ०६ सू०३ ४ मो० मा० प्र०, ३३८ ५. दही, ३३७ वही, ३४०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy