________________
वय-विषय और चाशनिक विचार
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्त्तारित्र की एकता ही मोक्ष का मार्ग है। मोक्षमार्ग एवं उसके अन्तर्गत आने वाले सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
और सम्यश्चारित्र एवं सम्यग्दर्शनादि के भी अन्तर्गत आने वाले जीवादि सप्त तत्व एवं देव, शास्त्र. गुरु आदि की परिभाषाएँ जैनागम में यथास्था निजय-व्यवहार नरागलं हार यनयोगों की पद्धति में अपनी-अपनी शैली के अनुसार विभिन्न प्रकार से दी गई हैं, अतः साधारण पाठक उनमें परस्पर विरोध-सा अनुभव करता है, उनके सही मर्म को नहीं समझ पाता है तथा भ्रम से अपने मन में अन्यथा कल्पना कर लेता है या संशयात्मक स्थिति में रहकर तत्त्व के प्रति अश्रद्धालू हो जाता है। इस तथ्य को पं० टोडरमल ने अनुभव किया था और उसे उन्होंने अपने ग्रन्थों में साकार रूप दिया एवं सही मार्गदर्शन करने का सफल प्रयास किया है । सम्यग्दर्शन
जीवादि तत्त्वार्थों का सच्चा श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है। | सच्चे देव, शास्त्र, गुरु की श्रद्धा ही सम्यग्दर्शन है । आत्म श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन की उक्त तीन परिभाषाएँ विभिन्न प्राचार्यों ने विभिन्न स्थानों पर की हैं। ऊपर से देखने में वे परस्पर विरुद्ध नजर आती हैं पर उनमें कोई विरोध नहीं है । पं० टोडरमल ने सम्यग्दर्शन की विभिन्न परिभाषाओं का स्पष्टीकरा करते हुए उनमें समन्वय स्थापित किया है ।
सम्यग्दर्शन प्राप्ति के लिए जीवादि सात तत्त्वों और देब, शास्त्र, गुरु का सच्चा श्रद्धान, ज्ञान एवं प्रात्मानुभूति अत्यन्त प्रावश्यक हैं। सप्त तत्त्व और सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिस पैनी दृष्टि की आवश्यकता है, वाह्य वृत्ति में ही सन्तुष्ट १ तत्वार्थसूत्र, प्र० १ ० १ २ बही, म १ सू० २ ३ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ०१ श्लोक ४ ४ पुरुषार्थसिड्युपाय, पलोक २१६ ५ मो. मा० प्र०,४७७-७८