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हो सका है। मेरा लिखने का प्राशय यह है कि शोध-प्रबंध तो कोई भी जैन-अजैन विद्वान लिख सकता था, किन्तु जैन वाङ्मय के सम्यक् ज्ञान व अनेकान्त दृष्टिकोण के बिना इस प्रकार का स्याद्वादमय विवेचन संभव नहीं था । पूज्य श्री कानजी स्वामी ने फतेपुर (गुजरात में) पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के शुभ अवसर पर उपर्युक्त शोध-प्रबंध को डाक्टर साहब के मुख से आद्योपांत सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की थी।
यहाँ पर पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की गतिविधियों का संक्षिप्त परिचय देना अप्रासंगिक नहीं होगा।
स्मारक भवन का शिलान्यास आध्यात्मिक प्रवक्ता माननीय श्री खेमचन्द भाई जेठालाल शेठ के हाथ से हुआ था एवं उद्घाटन आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य श्री कानजी स्वामी के कर-कमलों से दिनांक १३ मार्च, १९६७ ई० को हुआ।
संस्था का मुख्य उद्देश्य प्रात्म-कल्याणकारी, परम शांतिप्रदायक वीतराग-विज्ञान-तत्त्व का नयी पीढ़ी में प्रचार व प्रसार करना है । इसकी पूत्ति के लिए संस्था ने तत्त्व-प्रचार सम्बन्धी अनेक गतिविधियाँ प्रारम्भ की, जिन्हें अत्यल्प काल में ही अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई है । वर्तमान में ट्रस्ट द्वारा निम्नलिखित गतिविधियाँ संचालित हैं :पाठयपुस्तक-निर्माण विभाग
बालकों को सामान्य तत्त्वज्ञान प्राप्ति एवं सदाचारयुक्त नैतिक जीवन बिताने की प्रेरणा देने के उद्देश्य से युगानुकूल उपयुक्त धार्मिक पाठ्यपुस्तकें सरल सुबोध भाषा में तैयार करने में यह विभाग कार्यरत है। इसके अन्तर्गत बालबोध पाठमाला भाग १, २, ३, वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १, २, ३ तथा तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग १ पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। परीक्षा विभाग
उपर्युक्त पुस्तकों की पढ़ाई आरम्भ होते ही सुनियोजित ढंग से उन पुस्तकों की पढ़ाई के लिए परीक्षा लेने की समुचित व्यवस्था की
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