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श्लेष
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रूपक
बंदौ ज्ञानानन्दकर, नेमिचन्द गुरु कन्द | माधव बंदित विमल पद, पुन्य पयोनिधि नन्द ||
उक्त छन्द में 'नेमिचन्द' का अर्थ बाईसवें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ एवं गोम्मटसारादि ग्रन्थों के कर्त्ता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तवर्ती है तथा 'माधव' का अर्थ श्रीकृष्ण तथा प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य यात्रायें माधवचन्द्र त्रैविद्य है ।
इसी प्रकार का एक छन्द अर्थसंदृष्टि अधिकार में संस्कृत का भी मिलता है, जो कि इस प्रकार है :
उपमा
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और करव
पंख संग्रह सिद्धस्तं, त्रिलोकीसार दीपकं । वस्तुतस्तानि मिचमुज्वनं ॥
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मौक्तिक रत्नसूत्र में पोय, गूंथ्या ग्रन्थ हार सम सोय | संस्कृत संदृष्टिनि को ज्ञान, नहि जिनके ते बाल समान ।। वाह्न सम यह सुगम उपाव, या करि सफल करौ निज भाव | मेघवत अक्षर रहित दिव्य ध्वनि करि ।
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आप अर्थमय शब्द जुत ग्रंथ उदधि गम्भीर | यवगा ही जानिए याकी महिमा धीर ॥ कलिकाल रजनी में अर्थ को प्रकाश करें । रमो शास्त्र श्राराम मह सीख लेहु यह मानि ।। मेघवत् अक्षर रहित दिव्य ध्वनि करि । धर्मामृत हरै है ।।
बरसाय भवताप
मूल ग्रन्थ गोम्मटसार की तुलना 'गिरनार से एवं सम्यग्ज्ञानचंद्रिका टीका की तुलना 'वाहन' से करते हुए कवि ने एक लम्बा रूपक बाँधा है :