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पद्य साहित्य
गोमूत्रिकाबंध व चित्रालंकार -
मैं नमों नगन जैन जन ज्ञान ध्यान धन लीन । मैन मान बिन दान घन एन हीन वन छीन ||
इसे गौमूत्रका में इस प्रकार रखेंगे :
मैं
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ही
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चित्र के रूप में इस प्रकार रखा जायगा :
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१५.३
इसका अर्थ है - मैं ज्ञान और ध्यान रूपी धन में लीन रहने वाले, काम और श्रभिमान से रहित, मेघ के समान धर्मोपदेश की वर्षा करने वाले, पाप रहित, क्षीणकाय नग्न दिगम्बर जैन साधुओं को नमस्कार करता हूँ ।
sara से देखने पर उक्त छन्द में अनुप्रास, यमक आदि अलंकार भी खोजे जा सकते हैं ।