SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ पंडित टोडरमस : क्यक्तिस्व और कर्तृत्व __ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका प्रशस्ति में ग्रंथ की निविघ्न समाप्ति पर प्रसन्नता व्यक्त कर कवि ग्रंथ के कर्तृत्व सम्बन्धी अभिन्न (निश्चय) व भिन्न (व्यवहार) षट्कारक स्पष्ट करता है । तदुपरान्त जिनागम के प्रथम श्रुतस्कंध की परम्परा बताता है एवं सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका की रचना की चर्चा करता है। संक्षेप में पद्यों में ही टीका में वर्णित विषयों की तालिका दे दी गई है । अज्ञान और प्रमादजन्य दोषों के प्रति क्षमा याचना करते हुए कवि यह स्पष्ट करता है कि गलतियाँ होने के भय से यदि ग्रंथ रचनाएँ नहीं की जावेगी तो फिर साहित्य निर्माण का पंथ ही समाप्त हो जायगा, क्योंकि सर्वज्ञता प्राप्ति के पूर्व तो गलती होना सभी से संभव है । हाँ, कषाय और मनगढ़ात कल्पना से उनके द्वारा कुछ नहीं लिखा गया है, यह बात उन्होंने स्पष्ट कर दी है। इसके बाद उन्होंने अपनी चर्चा की है। उन्होंने अपना लौकिक परिचय कम और आध्यात्मिक परिचय अधिक दिया है। तदनन्तर अपने शास्त्राभ्यास की चर्चा के साथ व० रायमल की प्रेरणा से इस टीका की रचना करने का उल्लेख किया है। अन्त में उक्त शास्त्र के अभ्यास करने, पढ़ने-पढ़ाने की प्रेरणा देते हुए शास्त्राम्यास का शुभ फल बताया है। उनके पद्यों में विषय की उपादेयता, स्वानुभूति की महत्ता, जिन और जिनसिद्धान्त परम्परा का महत्त्व आदि बातों का रुचिपूर्ण शैली में अलंकृत वर्णन है । जैसे :अनुप्रास - दोष दहन गुन गहन घन, अरि करि हरि अरिहंत । स्वानुभूति रमनी रमन, जगनायक जयवंत ।। सिद्ध, सूद्ध, साधित सहज, स्वरस सूधारस धार । समयसार सिव सर्वगत, नमत होहु सुखकार || जैनीवानी विविध विधि, बरनत विश्व प्रमान । स्यात्पद मुद्रित अहित हर, करहु सकल कल्यान ।।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy