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पद्य साहित्य . नेमिचन्द जिन शुभ पद धारि ।
जैसे तीर्थ कियो गिरिनारि ।। तैसे नेमिचन्द मुनिराम ।
__ ग्रंथ कियो है तरण उपाय || देशनि में सुप्रसिद्ध महान ।
पूज्य भयो है यात्रा थान ।। यामै गमन करै जो कोय ।
उच्चपना पावत है सोय ।। गमन करन कौं गली समान ।
कर्नाटक दीका अमलान ।। ताकौं अनुसरती शुभ भई।
टीका सुन्दर संस्कृत भई ।। केशब बरणी बुद्धि निधान ।
संस्कृत टीकाकार सुजान ।। मार्ग कियौ तिहि जुत विस्तार ।
जहँ स्थूलनि को भी संचार ।। हमहू करिक तहाँ प्रवेश।
पायो तारन कारन देश ।। चितवन करि अर्थन को सार ।
असे कीन्हों बहुरि विचारि ।। संस्कृत संदृष्टिनि को ज्ञान ।
लहि जिनके ते बाल समान ।। गमन करन कौं अति तरफरें ।
बल विन् नाहि पनि की धरं ।। तिनि जीवनि की गमन उपाय ।
भाषाटीका दई बनाय ।। वाहन सम यह सुगम उपाव ।
या कमि सफल करौ निज भाव ।।