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पंडित टोडरमल : व्यक्तिरण और कसंत्व प्रकाशित हो चुकी है। तथा इसका अनुवाद खड़ी बोली में दि जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ से प्रकाशित हुआ है। पंडितजी की भाषाटीका के साधार पर परवर्ती विद्वानों ने अनेक टीकाएँ लिखी हैं जिनमें भूधर मिश्र, नाथूराम प्रेमी, उग्रसेन जैन, बाबू सूरजभान वकील, पं० मक्खनलालजी शास्त्री की प्रमुख हैं। उक्त टीकाकारों में से बहुतों ने यह बात भूमिका में स्वीकार भी की है । बाबू उनसेन जैन ने तो यहाँ तक लिखा है कि "पंडित टोडरमलजी की टीका को मैंने रोहतक जैन मंदिर सराय मुहल्ला की शास्त्र सभा में नवम्बर १९२६ से फरवरी १६३० तक पढ़ कर सुनाया । उस समय इस ग्रंथ
सामिन में मुख्य है, रतनचंद दीवान । पिरथीस्यंघ नरेश के, श्रद्धावान सुथान ।।६।। तिनिकै यति रुचि धर्मस्मी, सामिनि सौं प्रीति । देव शास्त्र गुरु की सदा, उर में महा प्रतीति ।।७।। प्रानंद सुत तिनको सखा, नाम जु दौलतराम । भृत्य भूप को कुल परिणक, जाकी बसवै धाम ||८|| कछुयक गुरु परतापत, फोनों ग्रंथ अभ्यास । लगन लगी जिनधर्म सू, जिनदासनि को दास ||६|| तासू रतन दीवान नें, कही प्रीति परि एह । करिए टीका पूरणा, उर धरि धर्म सनेह ॥१०॥ तब टीका पूरन करी, भाषा रूप निघाम ।
कुशल होय बहु संघ को, लहे जीव निज ज्ञान ॥११॥ १ प्रकाशक : मुंशी मोतीलाल शाह, जयपुर २ वि० सं० १९७१ में शाहगंज, आगरा में लिखित 3 प्रकाशक : श्रीमदराजचन्द्र शास्त्रमाला, अगास प्रकाशक : सह-कमेटी, दि. जैन मंदिर सराय मुहल्ला, रोहतक
प्रकाशक : बाबू सूरजभान वकील ६ प्रकाशक : भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता