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________________ रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन १४३ को पढ़ कर जैन सिद्धान्त के रहस्य का बड़ा भारी प्रभाव मेरे तथा सभासदों के चित्त पर पड़ा । जिस दिन सभा में यह ग्रंथ समाप्त हुआ तो श्रोतागरण को नियम प्रतिज्ञा दिलाते हुए मैंने स्वयं यह नियम किया कि मैं इस ग्रंथ की टीका को आजकल की सरल और साधारण भाषा में रूपान्तर करने का प्रयत्न करूँगा।" उत्तरवर्ती टीकाकारों ने पंडित टोडरमल की टीका का खड़ी बोली में अनुवाद मात्र कर दिया है । वे उसमें कुछ विशेषता नहीं ला पाये हैं । नये प्रमेय को तो किसी ने उठाया ही नहीं : जहा ऐरा। प्रयत्न किया है, विषय और अस्पष्ट हो गया है। _इस टीका का नाम 'पुरुषार्थसिद्धयूपाय भाषाटीका' है, जैसा कि इस अपूर्ण टीका को पूर्ण करने वाले पंडित दौलतराम कासलीवाल ने लिखा है :-"भाषादीका ता उपरि, कीनी टोडरमल्ल ।।" यह टीका पंडित टोडरमल ने मुल ग्रंथ के आधार पर ही लिखी है । इस टीका से पहले की और कोई टीका उपलब्ध नहीं है और न ही ऐसे उल्लेख प्राप्त हैं कि इसके पूर्व कोई टीका बनी थी। इस टीका ग्रंथ के अपूर्ण रह जाने से ग्रंथ के अन्त में लिखी जाने वाली प्रशस्ति पंडित टोडरमल द्वारा तो लिखी नहीं जा सकी । अतः अन्त:साक्ष्य के आधार पर तो इसके प्रेरणास्रोत का पता चलना संभव नहीं है, पर ख० रायमल ने लिखा है कि पंडित टोडरमल का विचार पाँच-सात ग्रंथों की टीका लिखने का और है । इससे यह प्रतीत होता है कि इस टीका का निर्माण कार्य उनकी अन्तःप्रेरणा का ही परिणाम था, किन्तु अधूरी टीका को पूर्ण करने की प्रेरणा पंडित दौलतराम कासलीवाल को दीवान रतनचन्दजी ने अवश्य दी, जैसा कि ग्रंथ की अन्तिम प्रशस्ति में पंडित दौलतराम ने स्पष्ट लिखा है : ' पुरुषार्थसियुपाय, दि० जैन मंदिर, सराय मुहल्ला, रोहतक, प्रस्तावना, १६ २ पु. भा. टी० प्र०, १२६ 3 इ० वि० पत्रिका, परिशिष्ट १
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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