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________________ j रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन E गुरण भी हैं, I "इसमें सिद्धान्त भी हैं और आचार भी । काव्य के और दृष्टान्तों द्वारा सुगम्य सूक्तियां भी कोई विषय इतनी दूर तक नहीं लाना गया कि वह पाठक को थका दे। थोड़े में बहुत कुछ उपदेश दे दिया गया है, और वह भी ऐसी सुन्दर शैली में कि विषय एकदम हृदयंगम हो जाय और उसके वाचक शब्द भी स्मृति पर चिपक जावें । मुनियों और गृहस्थों, स्त्रियों और पुरुषों, बाल और वृद्ध, साहित्यकों और साधारण पाठकों को यह रचना समान रूप से रुचिकर और हितकारी होने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि जैन समाज में शताब्दियों से इसका सुप्रचार रहा है। इस पर अधिक टीका टिप्पणी नहीं लिखी गई, इसका कारण उसकी सरलता है । उसमें जटिलता नहीं है । भारतीय सुभाषित साहित्य में आत्मानुशासन गरणनीय है - इस विशेषता के साथ कि उसमें श्रृंगाररस का विकार नहीं है' । आत्मानुशासन भाषाटीका का आरंभ मंगलाचरण स्वरूप काव्य से हुआ है, जिसमें देव-शास्त्र-गुरु के मंगल स्मरण के साथ-साथ आत्मानुशासन ग्रंथ और उसके ग्रंथकर्त्ता का परिचयात्मक स्मरण किया गया है । पश्चात् ग्रंथ निर्माण का हेतु बताया गया है । तदनन्तर मूलग्रंथ की भाषाटीका आरंभ होती है । संसार के समस्त प्राणी सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं, यतः उक्त प्रयोजन की सिद्धि के लिए इस ग्रंथ में आत्मस्वरूप की शिक्षा दी गई है। साथ ही साथ सावधान भी किया है कि कडुब श्रौषधि के समान यह उपदेश सुनने में कुछ कटु लग सकता है, परन्तु परिणाम हितकर ही होगा । इसका विषय अध्यायों में विभक्त नहीं है और न ही ऐसा करना संभव भी है, क्योंकि इसमें अनेक विषय जहाँ-तहाँ श्रा गये हैं । इसमें सिद्धान्त, न्याय, नीति, वैराग्य प्रादि की चर्चाएँ यत्र तत्र सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं। इसमें सम्यग्दर्शन का स्वरूप एवं उसके भेद, सुख-दुःख आत्मानुशासन शोलापुर, सम्पादकीय, vii १
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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