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पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर से आचार्यकल्प पं० टोडरमलजी पर शोध कार्य करने का आग्रह किया। उस अनुरोध को उन्होंने तत्काल सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योंकि उनका भी विचार चल ही रहा था । फलस्वरूप इन्दौर विश्वविद्यालय में डॉ० डी० के० जैन, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग के निर्देशन में उक्त शोध-प्रबंध उनके द्वारा मई सन् १९७२ ई० में प्रस्तुत किया गया ।
मेरा डॉ० भारिल्लजी से अत्यधिक निकट का सम्पर्क होने से मुझे मालूम है कि उन्होंने इस शोध-प्रबंध को तैयार करने में कितना अथक परिश्रम किया है। इस संबंध में खोज करने के लिए बहुत सा प्रकाशित व हस्तलिखित साहित्य कई स्थानों से इकट्ठा करना पड़ा । अनेकों जगह स्वयं को भी जाना पड़ा। महीनों तक लगातार अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुए रात-दिन एक किए। वह कहने में किंचित् भी अतिशयोक्ति नहीं कि डाक्टर साहब का सारा परिश्रम पूर्णरूपेण सफल हो गया है ।
मैं ट्रस्ट की ओर से डॉक्टर भारिल्लजी को इस सत्कार्य के लिये अनेकानेक बधाई प्रेषित करता हूँ । वे धन्यवाद के पात्र हैं । उन्होंने ट्रस्ट के संकल्प को पूर्ण किया और स्व० पं० चैनसुखदासजी की भावना को मूर्त रूप दिया । यदि आज वे हमारे बीच होते तो उनको कितनी खुशी होती इसका अनुमान हम नहीं लगा सकते ।
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दिनांक २८ जनवरी १६७३ ई० को हल्दियों का रास्ता स्थित बुलियन एक्सचेंज, जयपुर में आयोजित पंडित टोडरमल स्मृति समारोह के अवसर पर पंडित टोडरमलजी पर शोध-प्रबंध लिखने के उपलक्ष में डॉ० भारिलजी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया था। उक्त अवसर पर पू श्री कानजी स्वामी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ था जो आरंभ में दिया जा चुका है। उसके बाद डॉक्टर साहब के क्षयोपशम, अलौकिक ज्ञान व विलक्षण प्रतिभा के लिये मेरे पास लिखने को विशेष कुछ नहीं बचता है |
इस शोध प्रबंध द्वारा महापंडित टोडरमलजी के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आए हैं। अभी तक पूज्य पंडितजी के
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