________________
-
-
-
-
---
रचनाओं का परिचना मागोजन संस्कृत टीका - विषयव्यामुग्धस्य पुत्रवधाद्यकृत्यप्रवृत्ती कारणमाह
अन्धादित्यादि । विषयान्धीकृतेक्षणः अनन्धानि अन्धानि कृतानि अन्धीकृतानि, विषयैः अन्धीकृतानि
ईक्षणानि इन्द्रियारिग यस्य ।।३५॥ भाषा टीका -- विषयनि करि अन्ध किये हैं- सम्यग्ज्ञान रूपी नेत्र
जाका ऐसा यहु जीव है सो अन्ध से भी महाअंध है । इहाँ हेतु कहैं हैं। अंध है सो तौ नेत्रनि ही करि नाहीं जान है पर विषय करि अंध है सो काह कर भी न जाने है। मावार्थ - अंध पुरुष के तो नेवनि ही करि नाही सूझे है। मन करि विचारना काना करि सुनना इत्यादि ज्ञान तो वाक पाइए है । बहुरि जो विषयवासना ऋरि अंध भया है ताक काहू द्वार ज्ञान न होइ सके है । यदि नेत्रनि विर्षे दुःख हो तो नेत्रनि करि न दीस, तो मन करि विचार, भास, सीख देने वाला सुनाव इत्यादि ज्ञान होने के कारन बने परन्तु विषयवासना करि ऐसा अंध होइ काह को गिने नाहीं । तातें अंध होना निषिद्ध है। तिस ने भी विषयनि
करि अंध होना अति निषिद्ध जानना।' शुद्धधविवर्धन्ते सतामपि न संपदः ।
न हि स्वच्छाम्बुभिः पूरः कदाचिदपि सिन्धवः ।।४५।। संस्कृत टोका - ननु निरबद्यवृत्त्या अर्थोपार्जनं कृत्वा संपदां वृद्धि
विधाय सुखानुभक्नं करियामीति वदन्तं प्रत्याहशुद्धरित्यादि । शुद्धः निरवद्यः । स्वच्छाम्बुभिः निर्मलजलैः । सिन्धवः नद्यः ॥४५॥
'प्रात्मानुशासन शोलापुर, ३६ २ प्रा० भाटी०, ३७ 3 मात्मानुशासन शोलापुर, ४५