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रसनानों का परिचयात्मक अनुशीलन संकेतों और प्रतिपादित विषय के आधार पर प्रतीत होता है कि यदि यह महाग्रन्थ निर्विघ्न समाप्त हो गया होता तो पांच हजार पृष्ठों से कम नहीं होता और उसमें मोक्षमार्ग के मूलाधार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र का विस्तृत विवेचन होता। उनके अन्तर में क्या था, वे इसमें क्या लिखना चाहते थे, यह तो वे ही जान, पर प्राप्त प्रथ के आधार पर हम यह सकते हैं कि उसकी संभावित रूपरेखा कुछ ऐसी होती :-- (५) प्रर उनका मत के अनुमारि गृहस्थादिक के महायत प्रादि बिना
अंगीकार किए भी सम्यग्चारित्र हो है, तानै यह स्वरूप नाहीं । सांचा स्वरूप अन्य है, सो आग कहेगे । पृ० २२१
(६) साँचा जिन धर्म का स्वहा याग कहै हैं। पृ० २४६
(७) ज्ञानी के भी मोह के उद्यते रागादिक हो हैं । यह सत्य, परन्तु बुद्धि
पूर्वक रागादिक हाने नाहीं । गो विशेष वर्णन ग्रामें करेंगे । १० ३०४
(८) बहुरि भरतादिक मम्प्रदृष्टीनि के विषय-कषानि की प्रवृत्ति जैस
हो है, तो भी विशेष प्रागें कहेंगे । पृ० ३०४
(६) अंतरंग कपाय शक्ति घट विशुद्धता भए निजंग हो है । सो इसका
प्रगट स्वरूप याग निरूपण करंगे, तहां जानना । पृ० ३४१ (१०) अर फल लागै है मो अभिप्राय वि वासना है, ताका फल लाग है । सो
इनका विशेष व्याम्यान नागें करगे, तहां स्वरूप नीके भासेगा । १० ३४६ (११) याज्ञा अनुसारि हुवा देण्यांदेखी साधन कर है। तात याकं निश्चय
व्यवहार मोक्षमार्ग न भया । श्रा, निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग का
निरूपण करेंगे, ताका साधन भए ही मोक्षमार्ग होगा । पृ. ३७५ (१२) तैसें सोई आत्मा याम उदय निमित्त के वश त बन्ध होने के कारण नि
वि भी प्रवत है, बिश्य मेवनादि कार्य वा क्रोधादि कार्य कर है, तथापि तिस श्रद्धान का वाकै नाग न ही है। इसका विशेष निर्णय आगं करेंगे । पृ० ४७४