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________________ १२२ काशी निवासी कविवर वृन्दावनदास को लिखे पत्र में पंडित जयचन्द्र ने वि० सं० १८८० में भी मोक्षमार्ग प्रकाशक के अपूर्ण होने की चर्चा की है एवं मोक्षमार्ग प्रकाशक को पूर्ण करने के उनके अनुरोध को स्वीकार करने में ग्रममर्थता व्यक्त की है। अतः यह तो निश्चित है कि वर्तमान प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक अपूर्ण है, पर प्रश्न यह रह जाता है कि इसके आगे मोक्षमार्ग प्रकाशक लिखा गया या नहीं ? इसके आकार के सम्बन्ध में साधर्मी भाई ० रायमल ने अपनी इन्द्रध्वज विधान महोत्सब पत्रिका में वि० सं० १०२१ में इसे बीस हजार श्लोक प्रमाण लिखा है तथा इन्होंने ही अपने चर्चा संग्रह ग्रंथ में इसके बारह हजार श्लोक प्रमाण होने का उल्लेख किया है । पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व : ब्र० रायमल पंडित टोडरमल के अनन्य सहयोगी एवं नित्य निकट सम्पर्क में रहने वाले व्यक्ति थे। उनके द्वारा लिखे गए उक्त उल्लेखों को परस्पर विरोधी उल्लेख कह कर ग्रप्रमाणित घोषित कर देना अनुसंधान के महत्त्वपूर्ण सूत्र की उपेक्षा करना होगा । गंभीरता से विचार करने पर ऐसा लगता है कि बारह हजार श्लोक प्रमाण वाला उल्लेख तो प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक के संबंध में है, क्योंकि प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक है भी इतना ही, किन्तु बीस हजार श्लोक प्रमाण वाला उल्लेख उसके अप्राप्तांश की ओर संकेत करता है । पंडितजी की स्थिति वि० सं० १८२३-२४ तक मानी जाती है । अतः वि० सं० २०२१ के बाद भी इराका सृजन हुआ होगा । जिस प्रकार इसका प्रारम्भ हुआ है और इसका वर्तमान जो प्राप्त स्वरूप है, ว .. "और लिया कि टोडरमलजी कृत मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रंथ पूरण भया नाहीं, ताकी पुरा करना योग्य है । सो कोई एक मूल ग्रंथ की भाषा होय तो हम पूरण करें। उनकी बुद्धि बड़ी थी । यातें बिना मूल ग्रंथ के प्राय उनने किया। हमारी एती बुद्धि नाहीं, कैसें पूरा करें।" - वृन्दावन विलास १३२ परिशिष्ट १ 3 देखिए प्रस्तुत ग्रंथ ५२
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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