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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्व
ग्रंथ के प्रारंभ में प्रथम पृष्ठ पर अधिकार का नम्बर तथा नाम जैसे 'पीठबंध प्ररूपक प्रथम अधिकार' नहीं लिखा है, जैसा कि प्रथम अधिकार के अन्त में लिखा गया है । ॐ नमः सिद्धं ॥ श्रथ मोक्षमार्ग प्रकाशक नामा शास्त्र लिख्यते ||" लिखकर मंगलाचरण आरंभ कर दिया गया है । अन्य अधिकारों के प्रारम्भ में भी अधिकार निदेश व नामकरण नहीं किया गया है।
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उक्त विवरण से किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच पाना संभव नहीं है, किन्तु इतना ग्रवश्य कहा जा सकता है कि इन सब का निर्णय उन्होंने दूसरे दौर ( संशोधन ) के लिए छोड़ रखा था, जिसको बे कर नहीं पाए । यहाँ हमने अधिकारों का त्रिभागीकरण, नाम व क्रम प्रचलित परम्परा के अनुसार ही रखना उचित समझा है ।
अपूर्ण नांव अधिकार को पूर्ण करने के बाद उसके आगे और भी कई अधिकार लिखने की उनकी योजना थी। न मालूम पंडित टोडरमल के मस्तिष्क में कितने अधिकार प्रच्छन्न थे ? प्राप्त
अधिकारों में लेखक ने बारह स्थानों पर ऐसे संकेत दिए हैं कि इस विषय पर आगे यथास्थान विस्तार से प्रकाश डाला जायगा । उक्त
" मोक्षमार्ग प्रकाशक, सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली :
(१) सो अनि सवति का विशेष श्रागे कर्म अधिकार विप लिखेंगे तहाँ जानना । पृ० ४४
(२) सर्वज्ञ वीतराग अर्हन्त देव हैं। वाह्य अभ्यन्तर परिग्रह रहित नियंत्र गुरु हैं । सो इनिका वर्णन इस ग्रंथ विषै भागें विशेष लिखेगे सो जानना । पृ० १६६
(३) सात सम्यकुश्रद्धान का स्वरूप यहू नाहीं । साँचा स्वरूप है, मी वगै बन करेंगे सो जानना । ० २३१
(४) यो द्रव्यलिंगी मूर्ति के शास्त्राभ्यास होते भी मिथ्याज्ञान कहा, असंयत सम्रष्टि के विषयादिरूप जानना ताकों सम्यग्ज्ञान का। तातें यहु स्वरूप नाहीं, साँचा स्वरूप या कहेंगे सो जानना । पृ० २३१