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________________ पंडिस टोडरमल : व्यक्तित्व और कतरव पंडित टोडरमल ने स्वयं मूल प्रति में कई बार 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' शब्द का स्पष्ट उल्लेख किया है। तथा ग्रन्थ के नाम की सार्थकता सिद्ध करते हए इसका नाम अनेक तर्क और उदाहरणों से 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' ही सिद्ध किया है। प्रकाशक का प्रकाश हो जाना किसी लिपिकार की भूल (पैनस्लिप) का परिणाम लगता है, जिससे यह भ्रम चल पड़ा। प्रकाश और प्रकाशक मोटे तौर पर एकार्थवाची होने से किसी ने इस पर विशेष ध्यान भी नहीं दिया। वस्तुतः ग्रंथ का नाम 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' ही है और यही ग्रंथकार को इष्ट है। पंडितजी ने भूल प्रति में 'मोक्षमार्ग' शब्द का मोक्षमारगे' लिखा है, किन्तु अत्यधिक प्रचलित होने से हमने सर्वत्र मोक्षमार्ग' ही रखा है। इस ग्रन्थ का निर्माण ग्रन्थकार की अन्तःप्रेरणा का परिणाम है । अल्पबुद्धि वाले जिज्ञासु जीवों के प्रति धर्मानुराग ही अन्तःप्रेरणा का प्रेरक रहा है । ग्रन्थ निर्माण के मूल में कोई लौकिक आकांक्षा नहीं थी। धन, यश और सम्मान की चाह तथा नया पंथ चलाने का मोह भी इसका प्रेरक नहीं था; किन्तु जिनको न्याय, व्याकरगा, नय और प्रमाण का ज्ञान नहीं है और जो महान शास्त्रों के अर्थ समझने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिये जनभाषा में सुबोध ग्रन्थ बनाने के पवित्र उद्देश्य से ही इस ग्रन्थ का निर्माण हुना है । १ (क) "अथ मोक्षमार्ग प्रकाशक नामा शास्त्र लिख्यते ।" - देखिए प्रस्तुत ग्रंथ, ११२ (ख) प्रत्येक अधिकार के अन्त में पंडितजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक नाम का ही उल्लेख किया है। २ मो० मा०प्र०, २७ २६ ३ देखिए प्रस्तुत ग्रंथ, ११२ ४ मो मा० प्र०, २६ ५ वही
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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