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________________ रचनात्रों का परिचयात्मक अनुशौसाः यह ग्रन्थ अपूर्ण है, अतः ग्रन्थों के अन्त में लिखी जाने वाली प्रशस्ति का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए इसके रचनाकाल का उल्लेख अन्तःसाक्ष्य में तो प्राप्त होता नहीं है, पर माधर्मी भाई ब्रत रायमल ने वि० सं० १८२१ में लिम्बी गई इन्द्रध्वज विधान महोत्मव पत्रिका में यह लिखा है कि मोक्षमार्ग प्रकाशक बीस हजार श्लोक प्रमाण तैयार हो चुका है । इममें इतना सिद्ध होता है कि वि० म० १८२१ में वर्तमान प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक तैयार हो चुका था । यह भी निश्चित है कि वि० सं० १८१८ लकतोपंडितजी गोम्मटसारादि ग्रन्थों की टीका सम्यग्ज्ञानचंद्रिका के निर्माण में व्यस्त थे, इसलिए इसका प्रारम्भ वि० सं० १८१८ के बाद ही हुआ होगा | अतः इसका रचनाकाल वि० सं० १८१८ से १८२१ नक ही होना चाहिए । वैसे भी पंडितजी का अस्तित्व ही वि० मं० १८२३-२४ के बाद सिद्ध नहीं होता है, अतः यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इसका निर्माण वि० सं० १८१८ से विसं १८२३-२४ के बीच में ही हुआ होगा। मोक्षमार्ग प्रकाशक की रचना जयपुर में ही हई क्योंकि इसकी रचना सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका (वि० सं० १८१८) के समाप्त होने के उपरान्त हुई है। उक्त समय में पंडितजी जयपुर में ही रहे हैं। इनके कहीं बाहर जाने का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होना । प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक अपूर्ण है। करीब पांच मी पृष्ठों में नौ अधिकार हैं। प्रारंभ के आठ अधिकार तो पूर्ण हो गए, किन्तु नौवाँ अधिकार अपूर्ण है। इस अधिकार में जिस प्रकार विषय (सम्यग्दर्शन) उठाया गया है, उसके अनुरूप इसमें कुछ भी नहीं कहा जा सका है। सम्यग्दर्शन के आठ अंग और पच्चीम दोषों के नाम मात्र गिनाए जा सके हैं। उनका मांगोपांग विवेचन नहीं हो पाया है। जहाँ विषय छूटा है वहाँ विवेच्य-प्रकरगा भी अधूरा रह गया है. ' परिशिष्ट १
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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