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________________ रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन यदि जयसिंह के राज्यकाल में इसकी रचना हुई मानें तो फिर विक्रम संवत् १५०० के पूर्व की रचना मानना होगा क्योंकि राजा जयसिंह का राज्यकाल विक्रम संवत् १८०० तक ही रहा है और उसके पूर्व सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का निर्माण मानना होगा, जब कि 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका प्रशस्ति' में विक्रम संवत् १८१८ में बनने का स्पष्ट उल्लेख है । बारीकी से अध्ययन करने पर यह संशय उत्पन्न होता है कि क्या पूजा की जयमाल पंडित टोडरमल की ही बनाई हुई है ? शंका के कारण निम्नानुसार हैं : EE ( क ) पूर्ण पूजा संस्कृत में है, फिर जयमाल हिन्दी में क्यों ? पूजा के समान जयमाल भी संस्कृत में होनी चाहिए थी । (ख) “भाषा रचि टोडरमल शुद्ध, सुनि रायमल्ल जैनी विशुद्ध" क्या यह पंक्ति स्वयं पंडित टोडरमल लिख सकते थे, जिसमें स्वयं रचित भापाटीका को शुद्ध कहा गया हो, जब कि उन्होंने अपनी अन्य कृतियों में सर्वत्र लघुता प्रगट की है ? (ग) राजा जयसिंह के राज्यकाल में न लिखी जाकर भी क्या पंडित टोडरमल द्वारा जयसिंह के नाम का उल्लेख किया जा सकता था ? ऐसा लगता है या तो पंडित टोडरमल ने इसकी जयमाल लिखी हो न हो या फिर खो गई हो और बाद में किसी धर्मप्रेमी बंधु ने पूजा में जयमाल का प्रभाव देख कर स्वयं बना दी हो, और उसमें उक्त दोषों का ध्यान न रखा जा सका हो । जयमाल की रचना भी उनके स्तर के अनुरूप नहीं लगती । इसका रचनाकाल सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की रचना के उपरान्त ही माना जा सकता है । इसकी रचना जयपुर में ही हुई है क्योंकि सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का अंतिम निर्मारण जयपुर में ही हुआ था । 1 राजस्थान का इतिहास, ६३७
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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