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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व र कर्तृत्व
यह एक पूजा है, यतः इसमें वर्ण्य विषय को मुख्यता नहीं है । सर्वप्रथम स्थापना का बन्द है, जिसमें गोम्मटसार की भक्तिपूर्वक हृदय में स्थापना की गई है । तदुपरान्त जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल और अर्ध से अर्चा की गई है । उसके बाद गोम्मटसार जीवकाण्ड के प्रत्येक अधिकार में वरिणत विषय का संकेत देते हुए प्रत्येक अधिकार को अर्घ समर्पित किये गए हैं। तदनन्तर गोम्मटसार कर्मकाण्डगत प्रत्येक अधिकार को भी इसी प्रकार व समर्पित हैं । उक्त अर्थों के अन्त में एक अर्ध लब्धिसार-क्षपणासार को दिया गया है ।
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इसके बाद जयमाल प्रारंभ होती है। जयमाल में पंचपरमेष्ठी, चवीस तीर्थंकर व गणधर देव को नमस्कार करके गोम्मटसार शास्त्र में afa far का संक्षिप्त एवं संकेतात्मक वर्णन है। उसके बाद आदि शास्त्रकर्त्ता आचार्य कुन्दकुन्द एवं धवलादि शास्त्रों के सार को लेकर गोम्मटसार बनाने वाले आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती को स्मरण कर पंडित टोडरमल द्वारा भाषाटीका बनाने की चर्चा है |
जैनियों की पूजन - प्रणाली की एक निश्चित पद्धति है, उसी में इस पूजा की भी रचना हुई है । प्रारम्भ में स्थापना, उसके बाद जलादि अष्टद्रव्यों से पूजन, उसके बाद आवश्यक अर्ध और अन्त में जयमाल होती है, जिसमें पूज्य के गुरणों का स्तवन होता है । इस पूजन में इसी परम्परागत शैली का अनुकरण है ।
त्रिलोकसार भाषाटीका
'त्रिलोकसार' आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा रचित ग्रंथ है। इसमें तीनों लोकों (उद्ध, मध्य अध: ) का विस्तृत वर्णन है । इस ग्रंथ पर पंडित टोडरमल ने सरल, सुबोध भाषा में भाषाटीका लिखी है, जो हिन्दी साहित्य प्रसारक कार्यालय हीराबाग, बम्बई से प्रकाशित हो चुकी है। इसकी दो सौ वर्ष से भी अधिक प्राचीन कई हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ प्राप्त हैं। यह करणानुयोग का ग्रंथ है । इसको समझने के लिए गणित का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है । अतः यह ग्रंथ प्रायः विद्वानों के अध्ययन का ही विषय बना रहा ।