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रचमानों का परिचयात्मक अनुशीलन
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका विवेचनात्मक गद्यशैली में लिखो गई है। प्रारंभ में इकहत्तर पाट की पीटिका है । अाज नबीन शैली में मंगादित ग्रंथों में प्रस्तावना ना बड़ा महत्त्व माना जाना है। गली के क्षेत्र में दो सौ बीस वर्ष पूर्व निम्मी गई सम्यग्ज्ञानद्रिका पीटिका अनिव. भूमिका का प्राभिक रूप है। सम्यग्जान चंद्रिका की पीठिया. भूमिका का आद्म रूप होने पर भी इसमें प्रौड़ता पाई जाती है। हल्कापन कहीं भी देखने को नहीं मिलता। इसके पढ़ने में ग्रंथ ना पूरा हार्द स्नुल जाता है एवं इस गढ़ ग्रंथ के पढ़ने में आने वाली पाठक की समस्त काटेनाइयां दूर हो जाती है । हिन्दी आत्मकथा-साहित्य में जो महत्त्व महाकवि बनारसीदास के 'पाईकथानक को प्राप्त है, वही महत्त्व हिन्दी भूमिका-साहित्य में 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका' की पीटिका का है।
विषय को गरिगत के माध्यम से समझाया गया है । विषय को स्पष्ट करने के लिए संप्टियों के चार्टस नैयार किये गए हैं। संदृष्टियों का प्रयोग यथास्थान तो किया ही गया है, मात्र में एक मंप्टि अधिकार अलग से भी निरखा गया है ।
गोम्मटसार पूजा ___'गोम्मटसार पूजा' ६० टोडरमल की एक मात्र प्राप्त पद्यकृति है। इसमें उन्होंने गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड व लब्धिसार और क्षपरणासार नामक महान मिद्धान्त-ग्रंथों के प्रति अपनी भक्ति-भावना व्यक्त की है । यह ५७ छन्दों की छोटी मी कृति है, जिसमें ४५ छन्द संस्कृत भाषा में एवं १२ छन्द हिन्दी भाषा में हैं। इस में पूजा के अष्टक और प्रत्येक पूजा के अर्घ' मम्बन्धी छन्द सम्वन भाषा में लिख गए हैं तथा जयमाल हिन्दी भाषा में है ।
यह कृति प्रकाशित हो चुकी है। पंडित कमलकुमार शास्त्री व फूलचंद 'पुष्पेन्दु' खुरई ने इसके संस्कृत छन्दों का हिन्दी भाषा में
१ जलादि अष्ट द्रव्य के समुदाय को अर्थ कहा जाता है । २ भारतीय जैन सिद्धान्त प्रवाशिनी संस्था, श्याम बाजार, कलकत्ता