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रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन
(१८) संज्ञा मार्गा अधिकार (१६) आहारमार्गणा अधिकार ( २० ) उपयोग अधिकार
(२१) श्रोधादेणयोगप्ररूपणा प्ररूपण अधिकार (२२) यालाप अधिकार
कर्मकाण्ड महाअधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित नौ अधिकार हैं, इनमें भी अपने-अपने नामानुसार त्रिषयों का बहुत विस्तार में वर्णन है :
( १ ) प्रकृतिसमुत्कीर्तन अधिकार
( २ ) बन्धोदयसत्व श्रधिकार
(३)
( ४ ) त्रिचूलिका अधिकार (५) स्थानसमुत्कीर्तन अधिकार (६) प्रत्यय अधिकार
( 3 ) भावचूलिका अधिकार
(८) त्रिकरणचूलिका अधिकार
(a) कर्मस्थितिरचना अधिकार
६५.
विशेष सत्तारूपसत्वस्थान अधिकार
इस कर्मकाण्ड महाअधिकार में आठ प्रकार के कर्म, उनकी एक सी प्रड़तालीस प्रकृतियाँ, कर्मबन्ध की प्रक्रिया बन्ध के भेद, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग व प्रदेश का विस्तार से वर्णन किया गया है । कर्मों के बन्ध, उदय, सत्व अबन्ध, अनुदय, असत्व बन्ध व्युच्छत्ति, उदय व्युच्छत्ति एवं सत्व व्यच्छत्ति आदि का अनेक प्रकार से विस्तृत वर्णन है ।
गोम्मटसार जीवकाण्ड कर्मकाण्ड के अन्त में इन्हीं के परिशिष्ट रूप में अर्थसंदृष्टि महाअधिकार है जिसमें रेखाचित्रों (चा) के के द्वारा गोम्मटसार जीवकाण्ड और गोम्मटसार कर्मकाण्ड में लाए गूढ़ विषयों को स्पष्ट किया गया है ।