________________
पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व
तत्त्वजिज्ञासु अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षु भाइयों की शंकाओं का समाधान करना ही इस रचना का मूल उद्देश्य रहा है । यह रहस्यपूर्ण चिट्टी फाल्गुन कृष्णा ५ वि० सं० १८११ को लिखी गई थी, जैसा कि उसके अन्त में स्पष्ट उल्लेख है ।
८४
यह सम्पूर्ण रचना पत्रशैली में लिखी गई है। अतः चिट्ठी का प्रारम्भ तत्कालीन समाज में लिखे जाने वाले पत्रों की पद्धति से होता है । इसमें सामान्य शिष्टाचार के उपरान्त श्रात्मानुभव करने की प्रेरणा देते हुए आगम और अध्यात्म चर्चा से गर्भित पत्र देते रहने का आग्रह किया गया है। तदुपरान्त पूछे गये प्रश्नों का उत्तर आगम, युक्ति और उदाहरणों द्वारा दिया गया है ।
सर्वप्रथम अनुभव का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। उसके उपरान्त श्रात्मानुभव के सम्बन्ध में उठने वाले प्रत्यक्ष-परोक्ष, सविकल्पकनिविकल्पक सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर दिये गए हैं । अन्त में लिखा है कि विशेष कहाँ तक लिखें, जो बात जानते हैं, सो लिखने में आती नहीं, मिलने पर कुछ कहा जा सकता है, पर मिला सम्भव नहीं है। अतः समयसारादि ग्रध्यात्मशास्त्र व गोम्मटसारादि शास्त्रों का अध्ययन करना और स्वरूपानन्द में मग्न रहने का यत्न करना । इस प्रकार अलौकिक औपचारिकता के साथ चिट्ठी समाप्त हो जाती है। इसमें पंडित टोडरमल की प्राध्यात्मिक रुचि के दर्शन सर्वत्र होते हैं |
शैली के क्षेत्र में दो मो बीस वर्ष पूर्व का यह अभिनव प्रयोग है । शैली सहज, सरल और बोधगम्य है । विषय की प्रामाणिकता के लिए आवश्यक यागम प्रमाण', विपयों को पुष्ट करने के लिए समुचित तर्क तथा गम्भीर विषय पाठकों के गले उतारने के लिए लोकप्रचलित उदाहरण यथाप्रसंग प्रस्तुत किये गए हैं । शुभाशुभ परिणाम के काल में सम्यकत्व की उत्पत्ति सिद्ध करते हुए वे लिखते हैं:
पद्मनंदि पंचविशतिका, वृत्रयचक्र, समयसार नाटक तत्त्वार्थसूत्र, तर्कशास्त्र, अष्टसहस्त्री, गोम्मटसार, समयसार श्रात्मख्याति भादि आगम ग्रंथों के उद्धरण रहस्यपूर्ण चिट्ठी में दिये गए हैं।
J