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________________ रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन ५३ इसका नाम अधिकांश विद्वानों ने 'रहस्थपूर्ण चिट्ठी' ही माना है किन्तु कहीं-कहीं इसका नाम 'आध्यात्मिक पत्रिका' और 'आध्यात्मिक पत्र' भी मिलता है । दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत से प्रकाशित संस्करणों में थावरगा पृष्ठ पर 'रहस्यपूर्ण चिट्टी' नाम है पर भीतर मुखपृष्ठ पर रहस्यपूर्ण चिट्टी अर्थात् आध्यात्मिक पत्रिका' नाम भी मिलता है। पंडित परमानन्द ने अपने प्रकाशनों' में 'रहस्यपूर्ण चिट्टी' ही नाम दिया है । डॉ लालबहादुर शास्त्री ने इसका उल्लेख 'आध्यात्मिक पत्र' नाम से किया है परंतु उन्होंने इसकी प्रसिद्धि 'रहस्यपूर्ण चिट्टी' नाम से स्वीकार की है। पंडित टोडरमल ने स्वयं इस रचना का कोई नामकरण नहीं किया है क्योंकि उनकी दृष्टि में यह तो एक सामान्य है, कोई कृति नहीं । परन्तु विषय की गंभीरता और शैली की प्रांता की दृष्टि से इसका महत्त्व किसी कृति से कम नहीं है । लेखक की ओर से नाम के सम्बन्ध में कोई निर्देश न होने से लोग अपनी-अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न नामों से इसे पुकारने लगे । अत्यधिक प्रसिद्धि के कारण हमने इसे 'रहस्यपूर्ण चिट्ठी' नाम से ही अभिहित किया है । इस रचना का प्रेरणा-स्रोत मुलतान निवासी भाई खानचंद, गंगाधर, श्रीपाल और सिद्धारथदास का वह पत्र है, जिसमें उन्होंने कुछ सैद्धान्तिक और अनुभवजन्य प्रश्नों के उत्तर जानना चाहे थे और जिसके उत्तर में यह रहस्यपूर्ण चिट्ठी लिखी गई। विट्टी के प्रारम्भ में इसकी चर्चा की गई है । मुलतान नगर के पाकिस्तान में चले जाने से वहां के जैन वन्धु देश के बंटवारे के समय मन् १६४७ ई० में जयपुर आ गए थे। वे अपने साथ कई जिन प्रतिमाएं एवं शास्त्र-भंडार भी लाए थे । उन्होंने आदर्शनगर, जयपुर में एक दि० जैन मंदिर बनाया है, उसमें रहस्यपूर्ण चिट्टी की एक बहुत प्राचीन प्रति प्राप्त है, जिसे बे मूल प्रति कहते हैं । उक्त प्रति की प्राचीनता असंदिग्ध होने पर भी उसके मूल प्रति होने के टोन व स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं होते | " मो० मा० प्र० के अन्त में प्रकाि २ मो० मा० प्र० मथुरा प्रस्तावना, ४३
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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