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________________ पंडित टोडरमल, : व्यक्तित्व और कर्तृत्व लिखने के उपरान्त वे लिखते हैं – “विशेष ज्ञानवान पुरूषनि का प्रत्यक्ष संयोग है नाहीं, सात परोक्ष ही तिनिसो विनती करों हों कि मैं मंदबुद्धि हों, विशेष ज्ञानरहित हों, अविवेकी हों, शब्द, न्याय, गणित, धार्मिक प्रादि ग्रन्थनि का विशेष अभ्यास मेरे नाहीं है तातै शक्तिहीन हों तथापि धर्मानुराग के वशते टीका करने का विचार किया है सो या विर्षे जहां चूक होई अन्यथा अर्थ होई तहाँ-तहाँ मो ऊपरि क्षमाकरि तिस अन्यथा अर्थ को दुरिकरि यथार्थ अर्थ लिखना, ऐसी विनती करि जो चूक होइगी ताकै शुद्ध होने का उपाय कीया है।" इसी प्रकार रहस्यपूर्ण चिट्ठी में गूढ़ और गंभीर शंकाओं का समूचित समाधान करने के उपरान्त लिखते हैं :- "पर मेरी तो इतनी बदि नाड़ीं।" तथ' मोम्मटमार टीका की प्रस्तावना में वे लिखते हैं :- "ऐसे यह टीका बनेगी ता विर्षे जहां चूक जानों तहां बुधजन संवारि शुद्ध करियो छमस्थ के ज्ञान सावर्ण हो है, तातें चूक भी परे । जैसे जाको थोरा मूझे पर वह कहीं विषम मार्ग विर्षे स्खलित होई तो बहुत सूझने वाला बाकी हास्य न करै।" __पंडितजी द्वारा रचित मौलिक ग्रन्थों और टीकाओं में उनकी प्रतिभा के दर्शन सर्वत्र होते हैं। उनकी प्रतिभा के सम्बन्ध में उनके सम्पर्क में आने वाले समकालीन विद्वानों ने स्पप्ट उल्लेख किए हैं । ब्र० रायमल लिखते हैं - "अर टोडरमलजी के ज्ञान की महिमा अद्भुत देखी । ऐसे महन्तबुद्धि का धारक ईकाल विर्षे होना दुर्लभ है।' पंडित देवीदास गोधा ने उन्हें महाबुद्धिमान लिखा है । पंडितप्रबर जयचंदजी ने भी उनकी प्रतिभा को सराहा है | तत्कालीन जैन समाज में जैन सिद्धान्त के कथन में उनका प्रमाणिकता प्रसिद्ध थी। विवादस्थ विषयों में उनके द्वारा प्रतिपादित ५ स. चं० पी० २ जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १ ३ इ० मि. पत्रिका, परिशिष्ट १ ४ सिद्धान्तसार संग्रह भाषा बचनिका । सर्वार्थसिद्धि भाषा बननिका, प्रशस्ति
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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