SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व अध्ययन और ध्यान यही उनकी साधना थी। निरन्तर आध्यात्मिक अध्ययन, चिन्तन, वन के फलस्वरूप में हारमल की अपेक्षा 'मैं जीय हूँ' की अनुभूति उनमें अधिक प्रबल हो उठी थी। यही कारण है कि जब वे सम्यग्ज्ञानचंद्रिका प्रशस्ति में अपना परिचय देने लगे तो सहज ही लिखा गया :___में तो जीव-द्रव्य हूँ। मेरा स्वरूप तो चेतना (ज्ञानदर्शन) है । में अनादि से ही कर्मकलंक-मल से मैला है। कर्मों के निमित्त से मुझमें राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है। राग-द्वेष मेरे स्वभाव में नहीं हैं । राग-द्वेष के निमित्त से दुष्ट की संगति के समान इस शरीर का संग हो गया है। मैं तो रागादि और शरीर दोनों से ही भिन्न ज्ञान-स्वभावी जीव तत्त्व है। रागादि भावों के निमित्त से कर्म बंध और कर्मोदय के निमित्त से रागादि भाव होते हैं। इस प्रकार इनका यंत्रवत चक्र चल रहा है। इसी चक्र में मैं मनुष्य हो गया है। निज पद ( परमात्म पद ) प्राप्ति का उपाय यदि बन सकता है तो इस मनुष्य पर्याय में ही बन सकता है। मैं एक आत्मा और शरीर के अनेक पुद्गल स्कंध मिल कर एक असमान जाति पर्याय का रूप बन गया है, जिसे मनुष्य कहते हैं। इस मनुष्य पर्याय में जो जानने-देखने वाला ज्ञानांश है, वह में है। मैं अनादि अनन्त एक अमतिक अनन्त गुणों से युक्त, जीव-द्रश्य है। कर्मोदय का निमित्त पाकर मुझमें रागादिक दुःखदायी भावों की १ मैं हैं जीव-द्रव्य नित्य चेतना स्वरूप मेयों, लग्यो है अनादि तै कलंबा कर्म मल को । ताहि को निमित्त पाय रागादिक भाव भये, भयो है मारीर को मिलाप जसे खल को ।। रागादिक भावनि को पायके निमित्त पुनि, होत कर्म बंघ ऐसौ है बनाव जैसे कल को। ऐसे ही भ्रमत भयो मानुष शरीर जोग, बने तो बनें यहां उपाव निज थल को ॥३६।।
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy