________________
व्यक्तित्व पंडित टोडरमल गंभीर प्रकृति के प्राध्यात्मिक महापुरुष थे । वे स्वभाव से सरल. संसार से उदास, धुन के धनी, निरभिमानी, विवेकी, अध्ययनशील. प्रतिभावान, वाद्याडम्बर-बिरोधी, हतवद्धानी, क्रांतिकारी, सिद्धान्तों की कीमत पर कभी न झुकने वाले, प्रात्मानुभवी, लोकप्रिय प्रवचनकार, सिद्धान्त-ग्रन्थों के सफल टीकाकार एवं परोपकारी महामानव थे।
उनका जीवन प्राध्यात्मिक था। वे अपने दैनिक पत्र-व्यवहार में भी लोगों को प्राध्यात्मिक प्रेरणाएँ दिया करते थे। मुलतान की चिट्ठी में लिख गए निम्नलिखित बाक्य उनके जीवन के प्रतिबिम्ब हैं :
"इहां जिथा संभव प्रानन्द है, तुम्हारे चिदानन्दघन के अनुभव से सहजानन्द की वृद्धि चाहिजे।" ___इस बात का उन्हें बहुत दुःख था कि वर्तमान में प्राध्यात्मिक रसिक विरले ही है। अध्यात्म की चर्चा करने वालों से उन्हें सहज अनुराग था । वे व्यर्थ की लौकिक चर्चायों से युक्त पत्र-व्यवहार करना पसन्द नहीं करते थे, पर अध्यात्म और पागम की चर्चा उन्हें वहत प्रिय थी। अतः इस प्रकार के पात्रों को पाकर उन्हें प्रसन्नता होती थी और अपने स्नेहियों को इस प्रकार के पत्र देने के लिए प्रेरणा भी दिया करते थे, किन्तु सर्वोपरि प्रधानता आत्मानुभव को ही देते थे। अतः वे अपने पत्रों में बार-बार यह प्रेरणा देना आवश्यक समझते थे कि "पर निरन्तर स्वरूपानुभब में रहना ।" स्वरूपानुभव के बाद द्वितीय वरीयता देते हुए बे लिखते हैं, “तुम अध्यात्म तथा प्रागम ग्रन्थों का अभ्यास रखना ।
. "अबार वर्तमान काल में अध्यातम का रसिक बहुत थोड़े हैं। धन्य हैं ले स्वात्मानुभव की वार्ता भी कर हैं।"
- रहस्यपूर्ण चिट्ठी २ "और अध्यातम मागम की चर्चाभिन पत्र तो सीत्र-शीत्र देवो करी । गिलाग कभी होगा पर होगा।"
- रहस्यपुर चिट्ठी