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जीवनवृत्त
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अपार श्रद्धा थी । उन्होंने पंडित टोडरमल की मृत्यु के उपरान्त उनके अपूर्ण टीका ग्रन्थ 'पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भाषाटीका' को पूर्ण करने का आग्रह पंडित दौलतराम कासलीवाल, जयपुर से किया। उन्हीं की प्रेरणा के फलस्वरूप पंडित दौलतराम कासलीवाल ने उक्त टीका को विक्रम संवत् १८२७ में पूर्ण किया ।
दीवान रतनचंद और बालचंद छाबड़ा के अतिरिक्त उदासीन श्रावक महाराम श्रोसवाल, अजबराय त्रिलोकचंद पाटनी, त्रिलोकचंद सौगाणी, नयनचंद पाटनी आदि पंडित टोडरमल के सक्रिय सहयोगी एवं उनकी दैनिक सभा के श्रोता थे ।
प्रमेयरत्नमाला, प्राप्तमीमांसा, समयसार, श्रष्टपाहुड़, सर्वार्थसिद्धि आदि अनेकों गंभीर न्याय और सिद्धान्तग्रन्थों के सफल टीकाकार पंडितप्रवर जयचंद छाबड़ा; आदिपुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण यदि अनेक पुराणों के लोकप्रिय वचनिकाकार पंडित दौलतराम कासलीवाल, गुमानपंथ के संस्थापक पं० गुमानीराम तथा श्रत्यन्त उत्साही और घुमक्कड़ विद्वान् पं० देवीदास गोधा ने पंडित टोडरमल की संगति से लाभ उठाया था ।
१ " श्रानन्द सुत तिनको सखा, नाम जु दौलतगम 1 तासूं रतन दीवान ने कही प्रीति घर एह । करिए टीका पूरणा, उर घरि धर्म
सनेह || "
- पु० भा० टी० प्र०
२ "सो टोडरमलजी के श्रोता विशेष बुद्धिमान दीवान रतनचंदजी, अजबरायजी, त्रिलोकचंदजी पाटनी, महारामजी विशेष चर्चावान घोसान मिवान उदासीन तथा त्रिलोकचंदजी सौगाणी, भयनचंदजी पाटनी इत्यादि
- सिद्धान्तसार संग्रह बचनका प्रशस्ति
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= सर्वार्थसिद्धि बचनिका प्रशस्ति
* सिद्धान्तसार संग्रह यवनिका प्रशस्ति