________________
पंचास्तिकाय प्राभृत भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। गुण-पज्जयेसु भावा उप्पाद-वए पकुव्वंति ।।१५।।
भावस्य नास्ति नाशो नास्ति अभावस्य चैव उत्पादः ।
गुणपर्यायेषु भावा उत्पादव्ययान् प्रकुर्वन्ति ।।१५।। भावस्य सतो हि द्रव्यस्य न द्रव्यत्वेन विनाशः, अभावस्यासतोऽन्यद्रव्यस्य न द्रव्यत्वेनोत्पादः । किन्तु भावाः सन्ति द्रव्याणि सदुच्छेदमसदुत्पादं चान्तरेणैव गुणपर्यायेषु विनाशमुत्पादं चारभन्ते । यथा हि घृतोत्पत्तौ गोरसस्य सतो न विनाशः, न चापि गोरसव्यतिरिक्तस्यार्थान्तरस्यासतः उत्थादः, किन्तु गोरसस्यैव सदुच्छेदमसदुत्पादं चानुपलभमानस्य स्पर्शरसगन्धवर्णादिषु परिणामिषु गुणेषु पूर्वावस्थया विनश्यत्सूत्तरावस्थया प्रादुर्भवत्सु नश्यति च नवनीतपर्यायो घृतपर्याय उत्पद्यते तथा सर्वभावानामपीति ।।१५।।
हिन्दी समय व्याख्या गाथा-१५ अन्वयार्थ—(भावस्य ) भावका ( सत्का) ( नाशः ) नाश ( न अस्ति ) नही हैं ( च एन ) तथा ( अभावस्य ) अभावक र असत्का, ( उत्पाद) इत्पाद । न अस्ति) नहीं है, ( भावाः ) भाव ( सत् द्रव्ये ) ( गुणपर्यायेषु ) गुणपर्यायोंमें ( उत्पादव्ययान् ) उत्पादव्यय ( प्रकुर्वन्ति ) करते हैं।
टीका-यहाँ उत्पादमें असत्के प्रादुर्भावका और व्ययमें सत्के विनाशका निषेध किया
भावका–सत् द्रव्यका-द्रव्यरूपसे विनाश नहीं है, अभावका-असत् अन्य द्रव्यकाद्रव्यरूपसे उत्पाद नहीं है, परन्तु भाव-सत् द्रव्ये, सतके विनाश और असत्के उत्पाद बिना ही, गुणपर्यायोंमें विनाश और उत्पाद करते हैं। जिस प्रकार घीकी उत्पत्तिमें गोरसकासत्का-विनाश नहीं है तथा गोरससे भित्र पदार्थान्तरका असत्का-उत्पाद नहीं है, किन्तु गोरसको ही सत्का विनाश और असत्का उत्पाद किये बिना ही, पूर्व अवस्थासे विनाशको प्राप्त होनेवाले और उत्तर अवस्थासे उत्पन्न होनेवाले स्पर्श-रस-गंध-वर्णादिक परिणामी गुणोंमें मक्खनपर्याय विनाशको प्राप्त होती है तथा घी पर्याय उत्पन्न होती है, सर्वभावोंका भी उसी प्रकार वैसा ही है ( अर्थात् समस्त द्रव्योंको नवीन पर्यायकी उत्पत्ति में सत्का विनाश नहीं है तथा असत्का उत्पाद नहीं है, किन्तु सत्का विनाश और असत्का उत्पाद किये बिना ही, पहलेकी ( पुरानी ) अवस्थासे विनाशको प्राप्त होनेवाले और बादकी ( नवीन ) अवस्थासे उत्पन्न होनेवाले परिणामी गुणोंमें पहलेकी पर्यायका विनाश और बादकी पर्यायकी उत्पत्ति होती है।)