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The term "Panchaastikaya" or "Amo" refers to the five fundamental entities: Jiva (soul), Pudgala (matter), Dharma (motion), Adharma (rest), and Akasha (space). These entities are not created by anyone, not even by the Lok (world). The term "Alok" or "Aloyakkha" refers to the infinite pure space beyond the Lok.
The term "Samaya" (time) has three interpretations:
1. **Shabda Samaya (Word Time):** This refers to the textual description of the five entities, including their characteristics and relationships.
2. **Jnana Samaya (Knowledge Time):** This refers to the understanding and realization of the five entities, free from doubt, delusion, and confusion.
3. **Artha Samaya (Meaning Time):** This refers to the actual existence and interaction of the five entities, forming the Lok.
The Lok is defined as the realm where the five entities exist and interact. It is characterized by the presence of Jiva, Pudgala, Dharma, Adharma, and Akasha. The Lok is finite, while the Alok is infinite and pure space beyond the Lok.
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पंचास्तिकाय प्राभृत अथवा 'अमओ' अकृत्रिमो न केनापि कृतः, न केवलं लोकः, अलोयक्खं-अलोक इत्याख्या संज्ञा यस्य स भवत्यलोकाख्यः, अलोय खं इति भिन्नपदपाठान्तरे च अलोक इति कोर्थ: खं शुद्धाकाशमिति संग्रहवाक्यं । तद्यथा-समयशब्दस्य शब्दज्ञानार्थभेदेन पूर्वोक्तमेव त्रिधा व्याख्यानं विवायते.-पंचानां जीवाद्यस्तिकायानां प्रतिपादको वर्णपदवाक्यरूपो वादः पाठः शब्दसमयो द्रव्यागम इति यावत्, तेषामेव पंचानां मिथ्यात्वोदयाभावे सति संशयविमोहविभ्रमरहितत्वेन सम्यगवायो बोधी निर्णयो निश्चयो ज्ञानसमयोऽर्थपरिच्छित्ति वश्रुतरूपो भावागम इति यावत् तेन द्रत्यागमरूपशब्दसमयेन वाच्यो भावश्रुतरूपज्ञानसमयेन परिच्छेद्यः पंचानामस्तिकायानां समूहोऽर्थसमय इति भण्यते । तत्र शब्दसमयाधारण ज्ञानसमयप्रसिद्ध्यर्थमर्थसमयोत्र व्याख्यातुं प्रारब्धः स चैवार्थसमया लोको भण्यते । कथमिति चेत् ? यद् दृश्यमानं किमपि पंचेन्द्रियविषययोग्यं स पुद्गलास्तिकायो भण्यते, यत्किमपि चिद्रूपं स जीवास्तिकायो भण्यते, तयोर्जीवपुद्गलयोर्गतिहेतुलक्षणो धर्मः, स्थितिहेतुलक्षणोऽधर्मः, अवगाहनलक्षणमाकाशं, वर्तनालक्षण: कालश्च, यावति क्षेत्रे स लोकः । तथा चोक्तं-लोक्यन्ते दृश्यन्ते जीवादिपदार्था यत्र स लोकः तस्माद्बहिर्भूतमनन्तशुद्धाकाशमलाक इति सूत्रार्थः ।।३।।
हिन्दी सायर्षभृति माया...३ उत्थानिका-आगे आधी गाथासे समय शब्दको शब्द, ज्ञान व अर्थ रूपसे तीन प्रकार कहते हुए आगेकी आधी गाथासे लोक-अलोकका विभाग कहता हूँ ऐसा अभिप्राय मनमें धारकर अगला सूत्र कहते हैं। इसी तरह आगे भी कहे जानेवाले विवक्षित या अविवक्षित सूत्रके अर्थ को मनमें धारकर अथवा इस सूत्रके आगे यह सूत्र उचित है ऐसा निश्चय करके यह सूत्र कहते हैं ऐसी पातनिकाका लक्षण इसी क्रमसे यथासंभव सर्व ठिकाने इस ग्रन्थमें जानना चाहिये।
अन्वयसहित सामान्यार्थ-( पंचण्ह) पाँच जीवादि द्रव्योंका ( समवाओ) समूह { समउत्ति ) समय है ऐसा ( जिणुत्तमेहि पण्णत्तं ) जिनेन्द्रोंने कहा है। ( सो चेव ) वही पाँचोंका मेल या समुदाय ( लोओ हवदि ) लोक है। (तत्तो) इससे बारह [ अमिओ] अप्रमाण [ अलोओ] अलोक ( खं) मात्र शुद्ध आकाशरूप है ।।
विशेषार्थ-यहाँ समय शब्दका शब्द, ज्ञान, अर्थके भेदसे पहले ही तीन प्रकार व्याख्यान कहते हैं । पाँच जीवादि अस्तिकायोंकी प्रतिपादन करनेवाला वर्ण, पद वाक्यरूप जो पाठ है उसको शब्दसमय या द्रव्यागम कहते हैं । मिथ्यादर्शनके उदयका अभाव होते हुए उन ही पांचोंका संशय, विमोह,विभ्रम रहित यथार्थ अवाय, निश्चय, ज्ञान या निर्णय उसे ज्ञानसमय, अर्थज्ञान, भावश्रुत या भावागम कहते हैं तथा उस द्रव्यागमरूप शब्दसमयसे