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The five **Jiva** qualities, beginning with **Audayika** (arising), are combined with **Upayashamika** (subsided), **Kshayopayashamika** (subsided and destroyed), **Kshayika** (destroyed), and **Parinaamika** (transformed). These qualities are manifested in many ways.
The **Audayika** quality arises from the fruition of **karma**, the **Upayashamika** quality arises from the cessation of **karma**, the **Kshayopayashamika** quality arises from the destruction and cessation of **karma**, the **Kshayika** quality arises from the complete destruction of **karma**, and the **Parinaamika** quality arises from the transformation of the **Jiva**'s essence.
Four of these qualities are dependent on the four types of **upaadhi** (limiting conditions), while one is dependent on the **Jiva**'s inherent nature. These qualities are manifested in many ways due to the different types of **upaadhi** and the different natures of the **Jiva**.
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पंचास्तिकाय प्राभृत
उदयेनोपशमेन च क्षयेण द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां परिणामेन । युक्तास्ते जीवगुणा जीवगुणा बहुषु चार्थेषु विस्तीर्णाः ।। ५६।। कर्मणां फलदानसमर्थतयोद्भूतिरुदयः, अनुद्भूतिरुपशमः, उद्भूत्यनुद्भूती क्षयोपशमः, अत्यंतविश्लेषः क्षयः, द्रव्यात्मलाभहेतुकः परिणामः । तत्रोदयेन युक्त औदयिकः, उपशमेन युक्त औपशमिक:, क्षयोपशमेन युक्तः क्षायोपशमिक:, क्षयेण युक्तः क्षायिकः, परिणामेन युक्तः पारिणामिकः । त एते पञ्च जीवगुणाः । तत्रोपाधिचतुर्विधत्वनिबंधनाश्चत्वारः, स्वभावनिबंधन एकः । एते चोपाधिभेदात्स्वरूपभेदाच्च भिद्यमाना बहुष्वर्थेषु विस्तार्यंत इति ।। ४६ ।।
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हिन्दी समय व्याख्या गाथा ५६
अन्वयार्थ---( उदयेन ) उदयसे युक्त, ( उपशमेन ) उपशमसे युक्त, ( क्षयेण ) क्षयसे युक्त, ( द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां ) क्षयोपशमसे युक्त (च ) और ( परिणामेन युक्ता: ) परिणामसे युक्त (ते) ऐसे ( जीवगुणा: ) (पाँच) जीवगुण ( जीवके भाव ) हैं, (च ) और ( बहुषु अर्थेषु विस्तीर्णाः ) उन्हें अनेक प्रकारोंमें विस्तृत किया जाता है ।
टीका --- जीवको भावोंके उदय का ( पाँच भावोंकी प्रगटताका ) यह वर्णन है।
कर्मोंका फलदानसमर्थरूपसे उद्भव सो 'उदय' है, अनुद्भव सो 'उपशम' हैं, उद्भव तथा अनुद्भव सो 'क्षयोपशम' हैं, अत्यन्त विश्लेष सो 'क्षय' है, द्रव्यका आत्मलाभ ( अस्तित्व ) जिसका हेतु हैं वह 'परिणाम' हैं । वहाँ उदयसे युक्त वह 'औदयिक' हैं, उपशमसे युक्त वह 'औपशमिक' हैं, क्षयोपशमसे युक्त वह 'क्षायोपशमिक' है, क्षयसे युक्त व 'क्षायिक' है, परिणामसे युक्त वह 'पारिणामिक' है। ऐसे यह पाँच जीवगुण हैं। उनमें ( इन पाँच गुणोंमें ) उपाधिका चतुर्विधपना ( कर्मोंकी चार प्रकारकी दशा ) जिनका कारण (निमित्त ) हैं ऐसे चार हैं, स्वभाव जिसका कारण हैं ऐसा एक है। उपाधिके भेदसे और स्वरूपके भेदसे भेद करने पर, उन्हें अनेक प्रकारोंमें विस्तृत किया जाता है ।। ५६ ।।
संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा ५६
I
अथ पीठिकायां पूर्व जीवस्य यदौदयिकादिभावपंचकं सूचित तस्य व्याख्यानं करोतिजुत्ता युक्ताः । के ते जीवगुणा ते परमागमप्रसिद्धाः जीवगुणा: जीवभावा: परिणामाः । केन केन युक्ताः । उदयेण कर्मोदयेन, उवसमेण कर्मोपशमेन च खयेण कर्मक्षयेण दुहि मिस्सिदेणद्वाभ्यां क्षयोपशमाभ्यां मिश्रत्वेन परिणामे प्राकृतलक्षणबलात्सप्तम्यंतं तृतीयांतं व्याख्यायते । परिणामेन करणभूतेन इति व्युत्पत्तिरूपेणादयिकः औपशमिक:, क्षायिक:, क्षायोपशमिक, पारिणामिक एवं पंचभावा ज्ञातव्याः । ते च कथंभूताः । बहुसुदसत्थेसु वित्थिण्णा बहुश्रुतशास्त्रेषु तत्त्वार्थादिषु विस्तीर्णाः । औदयिकौपशमिकक्षायोपशमिकास्त्रयो भावाः कर्मजनिताः क्षायिकस्तु केवलज्ञानादिरूपो